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97वाँ संशोधन: सहकारी नेताओं ने नए युग का स्वागत किया

आज 15 फरवरी, 2013 से एक नया युग शुरू हो गया है। इस युग के लिए भारतीय सहकारी लोग दशकों से या शायद शताब्दी से इंतज़ार कर रहे थे। एक साल पहले इसी दिन भारतीय संसद ने 97वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम को पारित कर दिया था जिसमें सहकारिता को एक मौलिक अधिकार बनाने के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया था।

इसके अलावा इसके दूरगामी परिवर्तन से सहकारी समितियों के सह-अस्तित्व और विकास का एक मॉडल बनाने के उद्देश्य से इसकी कल्पना की गई थी।

राज्यों को भी 97वें संशोधन के अनुरुप अपने सहकारी अधिनियम में संशोधन करने के लिए कहा गया था जो राज्य ऐसा नही कर पाया है वह संपूर्णतः संघ मॉडल का अनुसरण कर सकता हैं।

भारतीय सहकारिता डॉट कॉम ने सहकारी समितियों के नए युग की संभावनाओं पर खुश कई सहकारी नेताओं से बात की। अपने छोटे और संक्षिप्त प्रतिक्रिया में यू.एस.अवस्थी, इफको के प्रबंध निदेशक ने कहा कि यह स्वायत्तता और जिम्मेदारी दोनों लाएगा, यह सहकारी समितियों के लिए अमृत है।”

एनसीयुआई के अध्यक्ष चन्द्र पाल सिंह ने कहा कि राज्य और प्रशासकों द्वारा नियंत्रित सहकारी समितियों में हस्तक्षेप की स्थिति अब नही रहेगी, यह संशोधन सहकारी समितियों में एकरूपता को लाएगा। इससे आंदोलन को मजबूती मिलेगी।”

जीसीएमएमएफ अध्यक्ष, अमूल ब्रांड के मालिक विपुल चौधरी ने भारतीय सहकारिता डॉट कॉम को बताया कि “यह सहकारी आंदोलन को मजबूत बनाने और अमूल जैसे ब्रांड को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ने में मदद करेगा।”

नेफेड के अध्यक्ष बिजेन्दर सिंह ने शरद पवार की सराहना करते हुए कहा कि हमें उपहार में जो दिया गया है उसका कोई विकल्प नही हैं।

एनसीसीएफ के अध्यक्ष वीरेंद्र सिंह ने कहा कि “शरद जी प्राथमिक सहकारी समिति से अपनी कैरियर की शरुआत की थी और आज उन्होंने देश के सहकारी आंदोलन को यह तोहफा दिया है, भावी पीढ़ी उन्हें हमेशा याद रखेगी।”

श्री अभ्यंकर, मालेगाम समिति के सदस्य ने कहा कि ईमानदार और विनम्र उम्मीद है कि 15 फरवरी, 2013 की शुरूआत राजनेताओं की मानसिकता में परिवर्तन का युग होगा जो मेरा भारत महान जैसे सहकारी क्षेत्र की स्वायत्तता के लिए आवश्यक है।

जीएन सक्सेना, इफको के सहकारी संबंधों के निदेशक ने कहा कि,”यह सहकारी आंदोलन के लिए एक नए युग की शुरुआत है और इससे सहकारी संस्थाओं को शक्ति मिलेगी।

97वें संशोधन की महत्वपूर्ण बातें निम्नलिखित है:

1. सहकारी समितियों की स्थापना करना एक मौलिक अधिकार है।

2. सहकारिता एजेंसी बना सकती है जो चुनाव की देखरेख करेगी।

3. निदेशक सहकारी बोर्ड के कार्यकाल में एकरूपता होगी।

4. निगमन, विनियमन और सहकारी लोकतांत्रिक सदस्य नियंत्रण, सदस्य-आर्थिक भागीदारी और स्वायत्त कामकाज के सिद्धांतों के आधार पर सोसायटी के समापन के लिए 4 प्रावधान।

5. एक सहकारी सोसायटी में निर्दिष्ट निर्देशकों की अधिकतम संख्या इक्कीस से अधिक नहीं होना चाहिए।

6. बोर्ड के निर्वाचित सदस्यों और उसके पदाधिकारियों के संबंध में चुनाव की तारीख को पांच साल की एक निश्चित अवधि के लिए प्रदान करना।

7. छह महीने के दौरान सहकारी समिति के निर्देशकों को बोर्ड के दमन या निलंबन के तहत रखा जा सकता है उसकी एक अधिकतम समय सीमा प्रदान करना।

8. स्वतंत्र पेशेवर लेखा परीक्षा प्रदान करना।

9. सूचना का अधिकार सदस्यों को उपलब्ध कराना।

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