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बैंकिंग-एमएसएमई कॉन्क्लेव: सहकारी क्षेत्र के लिए ऋण नीति पर चर्चा

पुणे में सहकार भारती, अर्थ संवाद और ग्लोबल इंडियन ओरिजिन नेटवर्क के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय बैंकिंग और एमएसएमई सेक्टर कॉन्क्लेव 2025 भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र को सहकारी ऋण वितरण की दिशा में आगे ले जाने वाला एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा।

इस कार्यक्रम में 300 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिनमें सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के विशेषज्ञ, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, तकनीकी विशेषज्ञ और प्रथम पीढ़ी के उद्यमी शामिल थे। कॉन्क्लेव में विशेष रूप से इस बात पर बल दिया गया कि 110 मिलियन से अधिक लोगों को रोजगार देने वाले और जीडीपी में लगभग 30% योगदान देने वाले एमएसएमई क्षेत्र को अब भी अपर्याप्त वित्तीय सहायता प्राप्त हो रही है।

सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष दिनेश गांधी ने चर्चा की शुरुआत करते हुए सहकारी बैंकों से आग्रह किया कि वे क्षेत्र-विशिष्ट वित्तीय रणनीतियां अपनाएं और अपनी प्रक्रियाओं को सरकार की एमएसएमई निर्यात योजना के अनुरूप आधुनिक बनाएं।

कार्यक्रम में उद्यमियों ने भी खुलकर अपने अनुभव साझा किए। चितले बंधु मिठाईवाले के इंद्रनील चितले ने कहा, “युवा उद्यमी अपने उत्पादों के विकास से अधिक समय नोटराइज्ड दस्तावेज़ों की प्रक्रियाओं में बर्बाद करते हैं।” उन्होंने इस समस्या के समाधान के रूप में डिजिटल ऑनबोर्डिंग, केंद्रीकृत केवाईसी और त्वरित ऋण वितरण प्रणाली की आवश्यकता बताई।

यशस्वी समूह के अध्यक्ष विश्वेश कुलकर्णी ने कौशल विकास और रोजगार-आधारित एमएसएमई के लिए सहकारी बैंकों की नेतृत्वकारी भूमिका पर बल दिया। वहीं, बधेकर समूह के प्रविण बधेकर ने सहकारी संस्थाओं के बीच केंद्रीकृत डेटा एक्सचेंज प्लेटफॉर्म की आवश्यकता पर जोर दिया, जिससे दस्तावेज़ों की दोहराव रोकने और ऋणकर्ताओं की बेहतर ट्रेसबिलिटी सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।

इस दौरान, महाराष्ट्र की 300 से अधिक अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों के लिए स्वैच्छिक ऋण दिशानिर्देश तैयार करने हेतु एक क्षेत्रीय कार्य समूह के गठन की घोषणा की गई। यह समूह परियोजना निगरानी डैशबोर्ड, मेंटरिंग प्लेटफॉर्म और रियल-टाइम अप्रेज़ल ट्रैकर जैसे नवाचारों पर भी कार्य करेगा, ताकि योग्य व्यवसायों को शीघ्र और प्रभावी वित्तीय सहायता प्रदान की जा सके। इस समूह की सिफारिशें अक्टूबर में शुरू होने वाले त्योहारी ऋण सत्र से पहले प्रस्तुत की जाएंगी।

नीति निर्धारण सत्र में प्रतिनिधियों ने भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वाणिज्यिक रियल एस्टेट को प्राथमिकता क्षेत्र के दायरे से बाहर रखने पर चिंता जताई।

वक्ताओं ने कहा कि जहां आवास ऋण को प्राथमिकता क्षेत्र में शामिल किया गया है, वहीं बैंक और खरीदारों द्वारा संयुक्त रूप से वित्तपोषित वाणिज्यिक परियोजनाएं इससे वंचित हैं। उन्होंने जोखिम भार के संतुलन की आवश्यकता पर बल देते हुए सलाहकारों से आग्रह किया कि वे केवल अनुपालन कमियों की ओर इशारा करने के बजाय वास्तविक परियोजनाओं का मार्गदर्शन और समर्थन करें।

समापन भाषण में, महाराष्ट्र स्टेट कोऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष विद्याधर अनास्कर ने जोरदार अपील करते हुए कहा, “हमें सहकारी बैंकों में एमएसएमई ऋण वितरण की संरचना को पुनः परिभाषित करना होगा। गिरवी आधारित सोच से आगे बढ़कर हमें ऐसे प्रोजेक्ट्स को समर्थन देना चाहिए, जिनमें व्यावसायिक संभावना, मजबूत नकदी प्रवाह और दूरदृष्टि हो। यही रास्ता है जिससे हम भारत की अगली सहकार-नेतृत्व वाली विकास गाथा लिख सकते हैं।”

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