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नई सहकारी नीति से 5 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य होगा हासिल: शाह

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में सहकारिता नीति पर राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित किया। इस अवसर पर सहकारिता राज्यमंत्री बी एल वर्मा और सहकारिता सचिव देवेंद्र कुमार सिंह सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

इस अवसर पर अपने संबोधन में केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि हम अगर उपयुक्त सहकारिता नीति बनाते हैं तो मोदी जी का पांच ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था और किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्यों में अपेक्षा से कई गुना ज़्यादा योगदान देश के अर्थतंत्र में कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि 6 जुलाई, 2021 का दिन भारत के सहकारिता क्षेत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण दिन था क्योंकि सालों से सहकारिता क्षेत्र से जुड़े लोगों की मांग थी कि भारत सरकार सहकारिता के सिद्धांत को मान्यता दे और इसके काम को गति देने के लिए एक अलग मंत्रालय का निर्माण करे। अंततोगत्वा, 6 जुलाई, 2021 को देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने निर्णय लिया और भारत में पहली बार भारत सरकार ने सहकारिता मंत्रालय की स्थापना ही।

इस मंत्रालय की स्थापना के पीछे उद्देश्य बहुत स्पष्ट है। मोदी जी ने सहकारिता क्षेत्र के सामने ‘सहकार से समृद्धि’ का लक्ष्य रखा है। क़ानून की दृष्टि से देखें, तो 1904-05 से देश में सहकारिता का अस्तित्व आया और अलग दृष्टि से देखें तो हमारे यहां सहकारिता का विचार सदियों पुराना है। हर क्षेत्र में सहकारिता के सिद्धांत के आधार पर भारत में काम होता रहा है। लेकिन क़ानून की रचना के अनुसार लगभग 100-125 वर्षों से सहकारिता भारत में है। इस यात्रा में गौरवपूर्ण योगदान सहकारिता का रहा है। इसके साथ-साथ ग्रामीण विकास और गरीब व्यक्तियों को रोज़गार देने में, वो सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें, ऐसा एक आर्थिक मॉडल बनाने में, सहकारिता की एक बहुत बड़ी भूमिका रही।

शाह ने कहा कि आज़ादी के बाद तुरंत ही, विशेषकर सरदार पटेल के प्रयासों से, देशभर में सहकारिता आंदोलन को एक बड़ी गति मिली। लेकिन कालक्रम में ये नज़र में आया कि लगभग 1960-70 के दशक से सहकारिता आंदोलन में स्थिरता आई और गिरावट भी। कई राज्यों में ये गिरावट देखने को मिली। विकसित राज्यों में कोई गांव ना रहे जहां पैक्स (PACS), दुग्ध सहकारी मंडी, कोऑपरेटिव, क्रेडिट सोसायटी या सहकारी बैंक ना हो। कोई ऐसा क्षेत्र ना रहे जहां कोऑपरेटिव की संभावना और पहुंच ना हो, जैसे मत्स्य उद्योग, विनिर्माण, उत्पादन जैसे कई क्षेत्रों में काफ़ी संभावना है। विकसित राज्यों को सेचुरेशन की ओर ले जाना, विकासशील राज्यों को विकसित बनाना और पिछड़े राज्यों को सीधे विकसित राज्यों की श्रेणी में ले जाने के लिए रणनीति बनाना।

केन्द्रीय सहकारिता मंत्री ने कहा कि मुनाफ़े का समान रूप से वितरण केवल कोऑपरेटिव कर सकती है। पूरा मुनाफ़ा शेयरधारकों के पास जाए और प्रबंधन पर ख़र्च न्यूनतम हो, ऐसा केवल सहकारिता के माध्यम से हो सकता है। देश का एक बहुत बड़ा तबक़ा जो आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है, सहकारिता एकमात्र ऐसा मॉडल है जो देश के 80 करोड़ लोगों को आर्थिक रूप से संपन्न बना सकता है। ये प्रयोग और इनके अच्छे परिणामों को भी हमने देखा है, चाहे लिज्जत, अमूल या कर्नाटक की मिल्क कोऑपरेटिव्स हों।

उन्होंने कहा कि हमें सहकारिता आंदोलन को आज के समय की चुनौतियों के लिए तैयार करना होगा, स्थिरता को दूर करना होगा, बदलाव लाने होंगे, पारदर्शिता लानी होगी, तभी छोटे से छोटे किसान का भरोसा हम पर बढ़ेगा। हमें चुनाव में लोकतांत्रिक मूल्यों को क़ानून के तहत स्वीकारना होगा तब संभावनाओं को प्लेटफ़ॉर्म मिलेगा और जब तक संभावनाओं को मंच नहीं मिलता, कोई क्षेत्र प्रगति नहीं कर सकता। अगर पोटेंशियल वाले लोगों को मंच देना है तो लोकतांत्रिक तरीक़ों को हमें और मज़बूती, सुदृढ़ता और कठोरता के साथ लागू करना होगा।

हमें प्रोफ़ेश्नलिज़्म को स्वीकारना होगा और कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सभी सिद्धातों को कोऑपरेटिव की भावना के साथ स्वीकारना होगा। हमारे देश में इफ़्को, अमूल जैसे कई मॉडल हैं जो चलते तो कॉर्पोरेट गवर्नेंस के सिद्धांतों के आधार पर लेकिन उन्होंने कोऑपरेट्व की भावना को भी अक्षुण्ण रखा है। इस प्रकार के मॉडल हमें खड़े करने होंगे। सहकारी संस्थाओं को कार्यपूंजी और प्लांट और मशीनरी के लिए ऋण ठीक से मिल जाए, हमें इसके लिए भी इन्फ़्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा।

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा, मैं जब कह रहा हूं कि नई सहकारी नीति की आवश्यकता है तो उस वक्त हमें अपराध भाव से अपने परफॉर्मेंस को देखने की जरूरत नहीं है। देश में आज लगभग 8,55,000 कोऑपरेटिव अच्छे चल रहे हैं, 1,77,000 क्रेडिट सोसाइटी चल रही हैं, अन्य 700,000 सहकारी समितियां चल रही हैं, 17 राष्ट्रीय स्तर के सहकारी संघ हैं, 33 स्टेट कोऑपरेटिव बैंक हैं, 63,000 से ज्यादा एक्टिव पैक्स हैं और उनमें लगभग सभी गांवों को समाहित कर लिया गया है और 12 करोड से ज्यादा सदस्य हैं और लगभग 91% गांवों में आज कोऑपरेटिव्स की उपस्थिति है। यह बताता है कि हमारा काम कितना सरल है, इतनी मजबूत नींव पर एक इमारत खड़ी करनी है। धीरे-धीरे हमारी पॉलिसी, हमारे कार्यकलाप और जरूरत पड़े तो कानून भी, जो कालबाह्य होता जा रहा है उसे हमें सोच विचार कर बदलना पड़ेगा और देश के विकास में ढेर सारा योगदान कोऑपरेटिव का है।

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