
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के उपलक्ष्य में सहकारी बैंकों को आधार-आधारित प्रमाणीकरण सेवाएं उपलब्ध कराने हेतु एक नया ढांचा जारी किया है। इस पहल से सहकारी बैंकों की लोगों तक पहुंच बढ़ेगी और डिजिटल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिलेगा।
यह ढांचा सहकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) और सहकारी बैंकों के साथ व्यापक परामर्श के बाद तैयार किया गया है। यह पूरे देश में कार्यरत 34 राज्य सहकारी बैंकों (एससीबी) और 352 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) के लिए लाभकारी साबित होगा।
नई प्रणाली के तहत, केवल राज्य सहकारी बैंक ही सीधे यूआईडीएआई के साथ प्रमाणीकरण उपयोगकर्ता एजेंसी (एयूए) और ई-केवाईसी उपयोगकर्ता एजेंसी (केयूए) के रूप में पंजीकृत होंगे। इसके साथ ही, जिला केंद्रीय सहकारी बैंक अपने राज्य सहकारी बैंकों की आईटी प्रणाली और आधार प्रमाणीकरण सेवाओं का निर्बाध उपयोग कर सकेंगे। इससे उन्हें अलग से आईटी अवसंरचना विकसित करने की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे लागत बचेगी और संचालन सुचारू रहेगा।
इस ढांचे से सहकारी बैंक ग्राहकों को तेज़, सुरक्षित और सरल आधार सेवाएं उपलब्ध करा सकेंगे। बायोमेट्रिक ई-केवाईसी और फेस ऑथेंटिकेशन से खासतौर पर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में खाता खोलना आसान होगा। इसके साथ ही, सरकारी सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाओं की राशि सीधे लाभार्थियों के सहकारी बैंक खातों में स्थानांतरित की जा सकेगी।
इसके अलावा, यह ढांचा सहकारी बैंकों को आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (एईपीएस) और आधार पेमेंट ब्रिज जैसी सेवाओं का विस्तार करने का अवसर देगा। इससे डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा मिलेगा और सहकारी क्षेत्र में वित्तीय समावेशन और मजबूत होगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से न केवल सहकारी बैंक आधुनिक तकनीक से जुड़ेंगे बल्कि भारत के वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र में उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण बन जाएगी।