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एनसीडीसी का विचार मंथन: कैसे हो सहकारी उपक्रम सफल

5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को हासिल करने के लिए केंद्र द्वारा सहकारी क्षेत्र को एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में प्रोत्साहित किया जा रहा है एवं इन संस्थाओं के भीतर उनके सुचारू और पारदर्शी कामकाज के लिए एक मानक के रूप में माना जाने वाला सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों का एक सेट विकसित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।

इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए, राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी) द्वारा सहकार प्रज्ञा के रूप में संकल्पित  “सहकारिता के लिए अच्छी अंतर्राष्ट्रीय कार्यप्रणालियां” विषय पर पहला विचार-मंथन सत्र गुड़गांव के लिनाक परिसर में प्रौद्योगिकियों, सर्वोत्तम कार्यप्रणालियों का पता लगाने और सहकारी क्षेत्र के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए आयोजित किया गया था, एनसीडीसी की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक।

इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए, एनसीयूआई के अध्यक्ष दिलीप संघानी ने इस बात पर जोर दिया कि व्यक्ति की अपनी आय बढ़ाने में सहकारिता एक बड़ी भूमिका निभाएगी और इस तरह प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना के अनुसार भारत आत्मनिर्भर बनेगा। इसलिए हर सरकारी योजना इन संस्थाओं के माध्यम से लागू करायी जानी चाहिए।

एनसीयूआई अध्यक्ष, जो सत्र में मुख्य अतिथि थे, ने यह भी कहा कि ‘सबका साथ सबका विकास’ का सपना केवल सहकारी समितियों के माध्यम से संभव है, क्योंकि देश के लगभग 95 प्रतिशत किसान विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 8.50 लाख सहकारी समितियों से जुड़े हैं।

सहकार प्रज्ञा, जिसे एनसीडीसी द्वारा लॉन्च किया गया है, एक ऐसा मंच है जिसका उद्देश्य ज्ञान के आपसी आदान-प्रदान को आसान बनाना है और सहकारी क्षेत्र के अवसरों और दायरे को समझने से लाभान्वित होने के लिए विशेष रूप से युवाओं और महिलाओं को शामिल करने वाली नई सहकारी समितियों की मदद करना है।

एनसीडीसी के प्रबंध निदेशक संदीप नायक ने कहा कि ज्ञान का आदान-प्रदान 21वीं सदी के तकनीकी साधन को समझने और उसमें शामिल होने में भी मदद करेगा, जिससे सहकारी समितियों की दक्षता और उत्पादकता में काफी बढ़ोत्तरी और इसके परिणामस्वरूप सभी क्षेत्रों में मूल्य और आपूर्ति श्रृंखला में वृद्धि हो सकती है।

वी श्रीनिवास, विशेष सचिव, डीएआर और पीजी; और डीजी, एनसीजीजी ने अपने भाषण में व्यक्तिगत पहचान  रखने वाली सभी सहकारी समितियों के लिए एक वन स्टॉप पोर्टल का सुझाव दिया।  यहां तक कि उन्होंने सरकार द्वारा की गई विभिन्न ई-पहलों, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण, जेम, आधार कार्ड, डिजिटल हेल्थ मिशन और माई जीओवी प्लेटफॉर्म के डिजिटल परिवर्तन पर भी प्रकाश डाला  दिया।

सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष रमेश वैद्य ने भी यह व्यक्त किया कि सहकारिताएं “परिवर्तन की अदृश्य एजेंट” हैं और देश को आत्मनिर्भर बनाने और भारत को विश्व मानचित्र में प्रथम स्थान देने के प्रधान मंत्री के सपने को साकार करने में मदद कर सकती हैं।  उन्होंने सहकारी समितियों की आय बढ़ाने में मदद करने के लिए एनसीडीसी के एमडी नायक की प्रतिबद्धता और विभिन्न नवीन योजनाओं का नेतृत्व करने के लिए उनकी प्रशंसा भी की।

कैप्टन प्रोफेसर पवनेश कोहली, सलाहकार, एनसीडीसी द्वारा संचालित संवाद सत्र के दौरान, सतीश मराठे, सदस्य, केंद्रीय बोर्ड, आरबीआई  और ज्योतिंद्र मेहता जैसे विशेषज्ञों ने भी भौगोलिक क्षेत्रों में तैयार और कार्यरत कार्यप्रणालियों, अनुशंसित मॉडल और कार्यप्रणालियां जो बहुपक्षीय निकाय जैसे आईसीए, एफएओ, नेडैक, विश्व बैंक, यूएनडीपी, आईएलओ, यूएनएस्कैप, ओईसीडी आदि द्वारा प्रस्तावित हैं, के बारे में चर्चा की।

बाद में नायक ने कहा कि हितधारकों से अनुरोध किया गया है कि वे नवंबर के अंत तक अपने सुझाव प्रस्तुत करें, जिन्हें उचित विचार के लिए संकलित किया जाए।  उन्होंने कहा, “उनके इनपुट के आधार पर, हम सर्वोत्तम प्रथाओं का एक सेट तैयार करेंगे, जिसे सहकारी समितियां अपनी आवश्यकता और आसानी के अनुसार अपना सकती हैं।”

सत्र के दौरान, इस क्षेत्र में सफल संस्थाओं द्वारा सर्वोत्तम प्रथाओं को भी प्रदर्शित किया गया।  इनमें किशोर, यूएलसीसीएस, केरल के प्रतिनिधित्व वाली यूएलसीसीएस नामक सहकारिता, संजीव चड्ढा, एमडी, नेफेड और उत्तराखंड सहकारिता विभाग द्वारा उत्तराखंड सरकार की सचिव डॉ. आर मीनाक्षी सुंदरम द्वारा प्रतिनिधित्व की गई प्राथमिक सहकरिताएं शामिल है।

माननीय केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह जी के नेतृत्व में नवगठित मंत्रालय भी एक नई सहकारी नीति की प्रक्रिया में है और सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए राज्यों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रस्तावित है।

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