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दाल के वितरण में देरी पर पासवान नेफेड एमडी से हुये नाराज

खबर है कि कृषि सहकारी संस्था नेफेड द्वारा देश में लगभग 20 करोड़ परिवारों को तीन महीने तक एक किलो दाल के वितरण में हुयी देरी के चलते संस्था के प्रबंध निदेशक संजीव चड्ढा को नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है।

बात तब शुरू हुई जब नेफेड द्वारा राज्यों में दालों के वितरण के मामले पर 13 अप्रैल 2020 को एक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आयोजित की गई थी।

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के कुछ शीर्ष अधिकारियों के साथ, नेफेड के एमडी संजीव चड्ढा भी एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे, जिसमें कई राज्यों के उपभोक्ता मंत्रियों ने रामविलास पासवान से शिकायत की थी कि उन्हें पीएम गरीब अन्न योजना के तहत केंद्र से गेहूं व चावल की आपूर्ति तो राज्यों में तेजी से शुरू हो गई लेकिन दाल की आपूर्ति में विलंब हो रहा है जैसा कि वादा किया गया था।

13 तारीख को आयोजित वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग में चड्ढा भी प्रतिभागियों में से एक थे और जब पासवान ने उनसे देरी के कारणों के बारे में पूछा तो वह कुछ स्पष्ट बताने की स्थिति में नहीं थे, सूत्रों ने बताया।

बाद में यह मामला पीएमओ गया जिसने मंत्रालय को देरी के बारे में बताने को कहा। हाल ही में मंत्रालय में सचिव के रूप में नियुक्त हुए पवन अग्रवाल को देरी के परिणामस्वरूप स्थानांतरित किया गया, जबकि नेफेड और इसके एमडी की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई है।

चूंकि नेफेड उपभोक्ता मामले के मंत्रालय के अधीन नहीं आता है और यह केवल दाल और प्याज सहित कुछ कृषि उत्पाद का भंडारण करता है इसलिये मंत्री ने नेफेड के एमडी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया।

सूत्र ने कहा कि नेफेड के एमडी ने उपयोग के लिए तैयार दाल के मुद्दे पर मंत्री से झूठ बोला, जिससे पासवान नाराज हो गए। शुरुआत में चड्ढा ने दावा किया था कि नेफेड के पास पर्याप्त दालें हैं, जबकि उन्होंने इस बात का खुलासा नहीं किया कि यह अन- मिल्ड दाल थी जिसका वह उल्लेख कर रहे थे।

उपभोक्ता मंत्रालय के सूत्र ने नेफेड द्वारा हाल ही में प्याज भंडारण के एक मामले का भी हवाला दिया, जिसमें 57 हजार टन में से मंत्रालय को केवल 26000 टन दिया गया था। “हम जानते हैं कि 10-15% अपव्यय सामान्य है, लेकिन अपव्यय के नाम पर 50% से अधिक का गायब होना हमारी समझ से बाहर है”।

यह जानना दिलचस्प है कि एक सहकारी संस्था होते हुए भी, नेफेड से जुड़े विषय इसके एमडी और उनकी टीम द्वारा ही संचालित होते हैं, जो कई वर्षों से पद पर बने हुये हैं।

नेफेड मामलों पर स्पष्ट रूप से बोलते हुए, इसके निदेशकों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “टाई-अप में हुई हानियों और कृषि-सहकारी के पुनर्जीवित होने की असंभव स्थिति के मद्देनजर, सहकारी-संचालक इसकी वित्तीय व्यवस्था संभालने में अधिक सावधानी बरत रहे हैं। नेफेड के प्रबंध निदेशक ने ठीक इसी स्थिति का लाभ उठाया है और संस्था से जुड़े मामलों को मनमाने ढंग से चलाते रहे हैं।

सहकारी नेता ने यह भी आरोप लगाया कि नेफेड द्वारा दालों की खरीद शायद ही सहकारी समितियों से की जाती है जैसा कि बताया जा रहा है। “कुछ मारवाड़ी (स्टार एग्री नामक एक कंपनी का नाम बार-बार आता है), जिनकी नेफेड अधिकारियों तक आसान पहुँच है, वे ही नफेड की दलहन-तेलहन की आपूर्ति श्रृंखला को नियंत्रित करते हैं, एक गंभीर आरोप जो कृषि मंत्रालय द्वारा गौर किए जाने के लिए पर्याप्त है”, उन्होंने आगे कहा।

यह कहा जा रहा है कि सहकारी नेताओं की एक हतोत्साहित टीम सब कुछ जानती है, लेकिन असहाय है क्योंकि हर बार एमडी उन्हें पीएमओ के नाम पर धमकी देते हैं। यह उचित समय है कि कृषि मंत्रालय नेफेड के मामलों पर गौर करे।

 

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