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बीजेपी से एनसीयूआई के पहले अध्यक्ष बने संघानी; सब को साथ लेकर चलने का किया वादा

एनसीयूआई के नए अध्यक्ष के रूप में गुजरात के दिग्गज सहकारी नेता दिलीप संघानी को निर्विरोध चुना गया है। संघानी पहले ऐसे नेता हैजिन्होंने संस्था के शीर्ष पद पर भाजपा का परचम लहराया है। अध्यक्ष के रूप में उनका नाम निवर्तमान अध्यक्ष चंद्रपाल सिंह यादव ने प्रस्तावित कियाजिसे बोर्ड के नव-निर्वाचित सदस्यों द्वारा करतल ध्वनि से पारित किया गया।

अध्यक्ष के अलावाबिजेन्द्र सिंह और शिवदासन नायर को संस्था के दो उपाध्यक्षों के रूप में निर्विरोध चुना गया है। इसके अलावानव निर्वाचित बोर्ड में विशाल सिंह और अरुण तोमर को को-ऑप्ट किया गया है। हालांकि इस चुनाव में अशोक डबास को काफी निराशा का सामना करना पड़ा है। नव-निर्वाचित बोर्ड ने पंजाब के गुरप्रताप सिंह खुशालपुर को स्थायी विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में नियुक्त करने का प्रस्ताव भी स्वीकार किया।

निर्वाचित सदस्यों के नामों की घोषणा के तुरंत बाद संघानी को बधाई देने वालों का तांता लग गया। इस मौके पर नव निर्वाचित अध्यक्ष के साथ फोटो खिंचवाने की होड़ लग गई, थोड़े ही समय में संघानी मालाओं में डूब गये। भावुक संघानी ने सभी का अभिवादन किया। यह दृश्य काफ़ी आनंददायक था।

अपने पहले अध्यक्षीय भाषण में संघानी ने सरकार की योजनाओं में सहकारिता को केंद्र बिंदु बनाने का वादा किया। हर किसी से समर्थन की मांग करते हुएसंघानी ने कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा घोषित एक लाख करोड़ के “एग्री-इंफ्रा फंड” का देश में सहकारी समितियों द्वारा उपयोग किया जाएगा।

सुलझे हुए और अनुभवी सहकारी नेता संघानी ने भूतकाल में भी पार्टी लाइन से हटकर सहकारी आंदोलन को चलाया है। बता दें कि संघानी गुजरात के अमरेली से आते हैंजहां उनका काफी दबदबा है। संघानी ने कहा कई बार अमरेली के सहकारी चुनाव में उन्होंने  कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन दिया है, उन्होंने सदा इस तथ्य को रेखांकित किया है कि सहकारिता राजनीति के परे है।

भाजपा का एनसीयूआई के शीर्ष पद पर पहुंचने का ये सफर कोई आसान नहीं रहा। मोदी सरकार के छह साल और भाजपा के 40 साल के संघर्ष के बाद ही कोई भाजपा का नेता सत्ता हासिल करने में सफल हुआ है। एनसीयूआई की स्थापना 1961 में हुई थी और तब से लेकर आजतक शीर्ष पद पर कांग्रेस या कांग्रेस के सहयोगी दलों का कब्जा रहा है।

उस लिहाज सेसंघानी आज एनसीयूआई के इतिहास में एक नया अध्याय लिख रहे हैं। हालांकिनव निर्वाचित बोर्ड के अधिकांश सदस्य पुरानी टीम के हैं। एक वरिष्ठ सहकारी नेता ने जीसी में विभिन्न दलों के समर्थकों के होने के आलोक में बताया किसंघानी एक प्रभावी अध्यक्ष साबित होंगेक्योंकि समय के क्रम में सभी लोग एक एकमत हो जाते हैं।

इसके अलावासंघानी का पुरानी टीम के साथ बेहतरीन तालमेल हैजिन्होंने अतीत में नेफेड की चेयरमैनशिप को हथियाने में संघानी की मदद की थी।  एनसीयूआई के अध्यक्ष के रूप में संघानी को चुनने में पुराने बोर्ड के सदस्य और खासकर चंद्रपाल और बिजेन्द्र की जोड़ी ने कठोर प्रयास किया है।

सहकारी नेता ने कहा कि एनसीयूआई से एनसीसीटी को अलग करना एनसीयूआई के लिए एक बड़ा झटका था और इसे वापस लाने का काम संघानी पर निर्भर करेगा। इतिहास को याद करते हुए सहकारी नेताओं ने बताया कि तत्कालीन कृषि मंत्री राधामोहन के समर्थन के बिना हीप्रधानमंत्री के समक्ष नेफेड के पुनरुद्धार का मामला संघानी ने उठाया था और उसे पुनर्जीवित करने में सफल भी हुए।

प्रधानमंत्री के साथ संघानी की निकटताभविष्य में सर्वोच्च सहकारी संस्था को और ऊंचाइयों तक ले जाने में सहायक हो सकती हैउन्होंने कहा। स्मरणीय है कि मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब संघानी उनके मंत्रिमंडल के सदस्य थे। इसके अलावादोनों ने अपने राजनीतिक संघर्ष के दौरान वर्षों तक एक साथ समय बिताया है।

90 के दशक में चिमनभाई पटेल मंत्रिमंडल में संघानी सबसे कम उम्र के कैबिनेट मंत्री बने थे। वे कई बार अमरेली से लोकसभा के सदस्य रहे हैं। “उन्होंने बहुत कम उम्र में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की”ज्योतिंद्र मेहता ने याद करते हुए कहाजो आपातकाल के दौरान उनके साथ जेल में थे।

एनसीयूआइ के अध्यक्ष पद पर विजयी होने के अलावासंघानी कई शीर्ष स्तर के सहकारी निकायों के बोर्ड में भी हैं। वह देश में सहकारी बैंकों के शीर्ष निकाय – नैफ़्सकॉब के भी अध्यक्ष हैं। वह दुनिया के सबसे बड़े उर्वरक सहकारी संघ ‘इफको’ के उपाध्यक्ष भी हैं। राज्य स्तर पर वह मार्केटिंग को-ऑप फेडरेशन ‘गुजकोमसोल’ के भी प्रमुख हैं।

भारतीय सहकारिता उनकी नई पारी के लिए उन्हें शुभकामनाएं देती है!

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