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मराठे ने की बड़े क्रेडिट को-ऑप को बैंकिंग लाइसेंस देने की वकालत

सहकार भारती के संरक्षक और आरबीआई केंद्रीय बोर्ड के निदेशक सतीश मराठे ने कहा कि बड़ी ऋण सहकारी समितियों को अर्बन कोऑपरेटिव बैंक में परिवर्तित करना चाहिए।

उन्होंने यह बात हाल ही में ‘स्मार्ट कृषि’ पर आयोजित एक वेबिनार को संबोधित करते हुए कही, जिसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। इस मौके पर केंद्रीय सहकारिता राज्य मंत्री बीएल वर्मा, सहकारिता सचिव डीके सिंह, सहकारिता मंत्रालय के उच्च अधिकारी समेत अन्य लोग मौजूद थे।

मराठे ने अपने संबोधन में कहा कि वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए राज्यों के सहकारी कानूनों में संशोधन करने की तत्काल आवश्यकता है ताकि सहकारी समितियों को सशक्त बनाया जा सके। “पैक्स समितियों, प्राथमिक दुग्ध संस्थाओं और सभी प्रकार की क्रेडिट सहकारी संस्थाओं के जमाकर्ताओं को जमा बीमा प्रदान करने के लिए डीआईसीजीसी की तर्ज पर एक संस्था को स्थापित करने की आवश्यकता है”, उन्होंने कहा।

“सभी पैक्स, प्राइमरी मिल्क सोसायटी और सभी प्रकार की क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसायटी को कम्प्यूटरीकृत किया जाना चाहिए और उन्हें पेमेंट गेटवे से जोड़ा जाना चाहिए। यह डिजिटलीकरण को बढ़ावा देगा और कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने में मदद करेगा। डीसीसीबी और राज्य सहकारी बैंकों के लिए नए बिजनेस मॉडल तैयार करने की जरूरत है”, मराठे ने मांग की।

उन्होंने वित्त मंत्रालय में वित्तीय सेवाओं के विभाग में एक नया खंड बनाने पर ध्यान केंद्रित किया ताकि वित्तीय सहकारी संस्थानों के व्यवस्थित विकास को सुनिश्चित किया जा सके। इस अनुभाग को वित्तीय सहकारी संस्थाओं को सरकारी योजनाओं, ब्याज सबवेंशन, बीमा आदि का विस्तार सुनिश्चित करना चाहिए।

डीसीसीबी के मुद्दे पर मराठे ने बताया, “देश में लगभग 350 डीसीसीबी हैं, जिनमें से लगभग 100 घाटे में चल रहे हैं। यह डीसीसीबी पैक्स, सहकारी संस्थाओं और गैर-कृषि गतिविधियों में लगी इकाइयों को ऋण देने के लिए उच्च वित्तपोषण एजेंसियों पर काफी हद तक निर्भर हैं। अपने देश के क्षेत्रफल को देखते हुए, हमें कम से कम वित्तीय रूप से मजबूत 400 जिला सहकारी बैंकों की आवश्यकता है”, उन्होंने मांग की।

यूसीबी के विषय पर उन्होंने कहा, “देश में लगभग 1550 यूसीबी हैं। इनमें से करीब 1100 महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक में हैं। शेष 450 शहरी सहकारी बैंक पूरे देश में फैले हुए हैं। हमारे देश के आकार को देखते हुए यह संख्या काफी छोटी है और 1500 से 2000 अन्य शहरी सहकारी बैंकों की आवश्यकता है।

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