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वामनिकॉम: मराठे ने को-ऑप के लिए स्वायत्तता की मांग की

पुणे स्थित वैकुंठ मेहता नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कोऑपरेटिव मैनेजमेंट (वामनिकॉम) ने पिछले हफ्ते अपना स्थापना दिवस मनाया। इस मौके पर आरबीआई निदेशक सतीश मराठे मुख्य अतिथि और नेफेड के प्रबंध निदेशक संजीव कुमार चड्ढा गेस्ट ऑफ ऑनर थे। समारोह में जीएसटी विभाग के संयुक्त आयुक्त हेमंत कुमार भी उपस्थित थे।

वामनिकॉम निदेशक डॉ के के त्रिपाठी ने मेहमानों का स्वागत करते हुए संस्था की गतिविधियों के बारे में दर्शकों को अवगत कराया।

त्रिपाठी ने बताया कि मार्किट में कुशल कृषि-प्रबंधकों की मांग को पूरा करने के लिए वामनिकॉम ने हाल ही में पीजीडीएम-एबीएम कोर्स का शुभारंभ किया है। उन्होंने पुनर्गठित पीजीडीसीबीएम कार्यक्रम और सहकारिता और सरकारी विभाग के आईटी अधिकारियों के लिए डिप्लोमा इन मैनेजमेंट ऑफ़ कंप्यूटर ऑपरेशंस के बारे में भी उल्लेख किया है।

इस मौके पर अनुसंधान, कंसल्टेंसी असाइनमेंट और संबंधित शैक्षणिक पहलुओं के क्षेत्र में वामनिकॉम की उपलब्धियों, पुस्तकों के अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन, सहकारी मामले के अध्ययन पर भी चर्चा की गई।

नेफेड के एमडी संजीव कुमार चड्ढा ने अपने संरचनात्मक मुद्दों को संबोधित करके सहकारी समितियों को मजबूत बनाने पर जोर दिया। उन्होंने सामूहिक विकास के लिए एफपीओ और नए-पुराने संगठनों के समान रूपों के प्रचार पर ध्यान केंद्रित किया।

चड्ढा ने नेफेड द्वारा एफपीओ और सहकारी समितियों के साथ मंडियों के संवर्धन के लिए किए गए प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कृषि सहकारी संस्था द्वारा वेबिनार आयोजित करके एफपीओ और सहकारी समितियों की क्षमता निर्माण, इन्फ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स और एफपीओ के फेडरेशन के गठन के प्रस्ताव नेफेड द्वारा सहकारी समितियों की मजबूती के लिए की गई कुछ पहल हैं।

मुख्य अतिथि सतीश मराठे ने अपने संबोधन में कहा कि सहकारिता के क्षमता विकास में वामनिकॉम महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उन्होंने कहा कि भारत में 8.5 लाख सहकारी समितियां है, जिससे 28 करोड़ लोग जुड़े हैं।

मराठे ने महसूस किया कि 1991 के बाद से सहकारी क्षेत्र के विकास की गति धीमी पड़ गई है, क्योंकि समयानुसार सहकारी कानूनों में संशोधन नहीं किया गया है। उन्होंने सहकारी समितियों के लिए अधिक स्वायत्तता की मांग की। मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज एक्ट्स की सराहना करते हुए, उन्होंने कहा कि ये अधिक स्वायत्तता और प्रशासनिक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं, लेकिन दुख की बात यह है कि मल्टीस्टैट उपस्थिति वाले सहकारी समितियों की संख्या में अधिक वृद्धि नहीं देखी गई है।

मराठे ने कहा कि कृषि-संबद्ध गतिविधियों को मजबूत करना, नई तरह की सहकारी समितियों का गठन करना और कृषि जल प्रावधान, भंडारण सुविधा, कृषि यंत्रीकरण पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

बैंकिंग क्षेत्र के हालिया घटनाक्रम सहकारी समितियों से जुड़े ग्रामीण लोगों तक पहुंचना संभव बना रहे हैं। उन्हें राष्ट्रीय भुगतान गेटवे के लिए एकीकृत किया जा रहा है जिससे एक मजबूत वित्तीय समावेशन प्रक्रिया हो रही है। सहकारी क्षेत्र को सहकारी कानून को अद्यतन करने और सहकारी समितियों के प्रबंधन के लिए पेशेवरों की एक टीम का निर्माण करने की आवश्यकता है, मराठे ने महसूस किया।

इस अवसर पर डॉ गिरीश मांगलिक, एसोसिएट प्रोफेसर ने संस्थान की गतिविधियों के बारे में एक प्रस्तुति दी और संस्थान के रजिस्ट्रार वी सुधीर ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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