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रणेन्द्र को मिला दसवां श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान

रणेन्द्र की रचना में ग्रामीण जीवन की झलक

उर्वरक क्षेत्र की प्रमुख संस्था इफको द्वारा वर्ष 2020 का ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’ वरिष्ठ कथाकार श्री रणेन्द्र को प्रदान किया गया। राँची वि. वि. के आर्यभट्ट सभागार में आयोजित एक भव्यष समारोह में उन्हें सम्माननित किया गया।

आदिवासी जीवन को अपनी लेखनी का विषय बनाने वाले लेखकों में ‘रणेन्द्र’ का नाम विशेष रूप से उभरकर सामने आता है। वे आदिवासी बाहुल्य राज्य झारखंड से विशेष रूप से सम्बद्ध रहे हैं और वहाँ के आदिवासी समुदायों की सामाजिक-सांस्कृतिक विशेषताओं और अंतःसंबंधों से रूबरू होते रहे हैं। इसके अतिरिक्त वैश्वीकरण एवं विकास के प्रभावों के दृष्टा और अन्वेषक भी रहे हैं।

सर्वप्रथम सन् 2008 ई. में वे ‘ग्लोबल गाँव के देवता’ उपन्यास को लेकर साहित्य जगत में प्रवेश करते हैं और आदिवासी समुदाय ‘असर’ के जीवन का संतप्त एवं संक्षिप्त आख्यान प्रस्तुत करते हैं। तत्पश्चात् सन् 2014 ई. में वे पुनः आदिवासी समुदाय ‘मुंडा’ के जीवन संघर्ष को इक्यावन अध्यायों में विस्तृत ‘गायब होता देश’ शीर्षक उपन्यास के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत के घरानों पर आधारित उनका नया उपन्यास ‘गूंगी रुलाई का कोरस’ अब पाठकों के बीच है।

वरिष्ठ साहित्यकार प्रों नित्यानंद तिवारी की अध्यक्षता में गठित निर्णायक मंडल ने श्री रणेन्द्र का चयन खेती-किसानी, आदिवासी जीवन और ग्रामीण यथार्थ पर केन्द्रित उनके व्यापक साहित्यिक अवदान को ध्यान में रखकर किया गया है। निर्णायक मंडल के अन्य सदस्य श्रीमती चंद्रकांता, श्री मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, प्रो. रविभूषण, श्री विष्णु नागर एवं डॉ. दिनेश कुमार शुक्ल थे।

प्रतिवर्ष दिया जाने वाला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार किसी ऐसे रचनाकार को दिया जाता है जिसकी रचनाओं में ग्रामीण और कृषि जीवन से जुड़ी समस्याओं, आकांक्षाओं और संघर्षों को मुखरित किया गया हो। मूर्धन्य कथाशिल्पी श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में वर्ष 2011 में शुरू किये गये इस सम्मान के तहत सम्मानित साहित्यकार को एक प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति पत्र तथा ग्यारह लाख रुपये की राशि प्रदान की जाती है।

अब तक यह सम्मायन श्री विद्यासागर नौटियाल, श्री शेखर जोशी, श्री संजीव, श्री मिथिलेश्वर, श्री अष्टभुजा शुक्ल, श्री कमलाकान्त त्रिपाठी, श्री रामदेव धुरंधर, श्री रामधारी सिंह दिवाकर एवं महेश कटारे को प्रदान किया गया है। झारखण्डा के किसी साहित्य्कार को पहली बार इस सम्मारन से नवाजा गया है।

इफको के प्रबंध निदेशक डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी ने अपने शुभकामना संदेश में सम्मािनित साहित्यिकार श्री रणेन्द्र  को बधाई दी है।

सम्मान समिति के अध्यक्ष प्रो नित्यानंद तिवारी ने श्री रणेन्द्रर को रेणु की परंपरा का लेखक बताते हुए ‘ग्लोबल गाँव के देवता’ को गोदान, मैला आँचल की परंपरा का उपन्यास माना। उन्हो ने कहा कि यह उपन्याँस मैला आंचल के बाद ग्रामीण और किसानी जीवन का सबसे प्रामाणिक चित्रण करता है। भारत की आधारभूत संस्था के रूप में कार्य करने के लिए उन्हों ने इफको सराहना की।

इस अवसर पर ‘लोक का शुक्ली पक्ष’ के तहत नीलोत्पलल मृणाल एवं उनके साथियों का गायन हुआ जिसकी उपस्थित लोगो ने काफी प्रशंसा की। ये अपने आप में एक अनोखा व अभिनव प्रयोग है। साथ ही श्रीलाल शुक्लप की कहानी ‘सुखांत’ की रंग प्रस्तुनति भी की गई। जिसका निर्देशन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी श्री देवेन्द्र राज अंकुर ने किया है।

इस अवसर पर वरिष्ठ् साहित्यरकार डॉ. प्रेम कुमार मणि और रांची वि.वि. के पूर्व विभागाध्य क्ष हिंन्दी  विभाग डॉ. अशोक प्रियदर्शी ने भी उदबोधन दिया और श्री रणेन्द्रि को अपनी शुभकामनाएं एवं बधाई दी।

समारोह में रांची विश्वविद्यालय, डॉ. श्याामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय और झारखण्ड  केन्द्रीय विश्वविद्यालय के छात्र-शिक्षक सहित शहर के साहित्य्कार और साहित्यप्रेमी शरीक हुए। इस समारोह में कोरोना से बचाव को ध्या न में रखते हुए सामाजिक दूरी का विशेष ख्यािल रखा गया।

 

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