मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक केंद्र सरकार ने दुग्ध सहकारी समितियों सहित डेयरी उद्योग के प्रतिनिधियों को आश्वासन दिया है कि वह घरेलू हितधारकों के साथ आवश्यक परामर्श के बिना क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के बारे में निर्णय नहीं लेगी।
सरकार ने हाल ही में जीसीएमएमएफ के प्रबंध निदेशक आरएस सोढी और अन्य निजी और सहकारी दूध कंपनियों तथा पंजाब, कर्नाटक, तमिलनाडु, झारखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और बिहार से डेयरी सेक्टर के प्रतिनिधियों को बैठक में आमंत्रित किया था।
एक शीर्ष नौकरशाह की अध्यक्षता में सम्पन्न बैठक में वाणिज्य मंत्रालय ने सकारात्मक रुख के साथ सरकार का पक्ष दोहराया कि घरेलू हितधारकों के साथ परामर्श के बिना सरकार कुछ नहीं करेगी।
इस तथ्य से वाकिफ कि विदेशी दुग्ध उत्पादक भारतीय डेयरी क्षेत्र के खिलाफ गलत प्रोपेगेंडा चलाने में लगे हुये हैं, जीसीएमएमएफ़ के एमडी आरएस सोढ़ी ने कहा , “मुझे विश्वास है कि भारत सरकार उन्हें अपने काम में सफल नहीं होने देगी”।
बैठक के परिणाम पर प्रतिक्रिया देते हुए सोढ़ी ने “भारतीयसहकारिता.कॉम” से कहा कि वह सरकार द्वारा दिए गए आश्वासन से संतुष्ट हैं।
स्मरणीय है कि न्यूजीलैंड सरकार के प्रतिनिधि उनके पैरवीकार और उनके आरसीईपी वार्ताकार भारत को उनके उत्पाद के 5% निर्यात पर जोर दे रहे हैं। वे हमें मानते होंगे कि यह भारत जैसे देश के लिए यह एक छोटी मात्रा है।
लेकिन न्यूजीलैंड के कुल 34,47,000 (लगभग 35 लाख) मीट्रिक टन दूध उत्पाद के 5% का भारत में निर्यात 1.72 लाख टन के बराबर है, जो कुल घरेलू उत्पादन का लगभग एक तिहाई है। इस प्रकार भारत, न्यूजीलैंड को अपने कुल बाजार का 1/3 भाग समर्पण कर देगा।
और यदि अन्य आरसीईपी देश भी भारतीय बाजार पर नजर रखते हैं, तो घरेलू उत्पादन पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगा और भारत डेयरी उत्पादों का शुद्ध आयातक बन जाएगा। भारतीय डेयरी उद्योग 10 करोड़ दुग्ध उत्पादकों के लिए आजीविका और जीविका का एक प्रमुख स्रोत है।
इस बीच, केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल, आरसीईपी के एक सफल शासन के सकारात्मक प्रभाव को लेकर बेहाल हो गए हैं। गोयल ने पिछले सप्ताह बैठक से लौटते हुए कहा कि वैश्विक जनसंख्या का 48 प्रतिशत और इसका 45 प्रतिशत व्यापार आरसीईपी देशों के भीतर किया जाता है और भारत इसका हिस्सा बनने से बच नहीं सकता।