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नीम खेती: जब इफको-एफआरआई समझौता रंग लाया

उच्च उपज वाले नीम के पेड़ की किस्मों का पता लगाने के उद्देश्य से करीब तीन साल पहले देहरादून में इफको और फारेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट (एफआरआई) के बीच हुए करार ने अब जाकर आकर्षक परिणाम दिए हैं। इस रिसर्च से पता चला है कि नीम के पौधे न सिर्फ लंबे होते हैं बल्कि इनको बड़े होने में समय भी कम लगता है। रिसर्च की दुनिया में कहा जा रहा है कि यह पूरे देश में नीम-खेती को एक नया आयाम देगा।

इफको के मार्केटिंग डायरेक्टर योगेन्द्र कुमार ने बताया कि एफआरआई द्वारा विकसित कुछ जीनोटाइप 2.50 मीटर तक लंबी पाई गई हैं। कुमार इस विषय पर बारीकी से निगरानी रख रहे हैं। कुमार ने आगे कहा कि इस तरह तेजी से बढ़ते जीनोटाइपों से पर्याप्त बीज का उत्पादन होने की संभावना है।

कुमार ने रिसर्च की जटिलता को समझाते हुए कहा कि इससे प्राप्त निमोली में अजादियाटिन की मात्रा काफी अधिक है यानि कि एक ग्राम निमोली में तेल की मात्रा पहले के मुकाबले कई गुना अधिक होगी।

यहां ये कहना उचित होगा कि देश में यूरिया का नीम लेपन अनिवार्य रूप से किया जा रहा है। यह एक ऐसी पहल है जिसने फसल में यूरिया के उपयोग को न सिर्फ कम किया है बल्कि यूरिया की कमी की कहानियां इतिहास बन कर रह गई हैं।

सहकारिता के लिए ये संतोष की बात है कि सहकारी क्षेत्र में सक्रिय इफको इस वैज्ञानिक विकास में अग्रणी भूमिका निभा रही है। गांव वालों से निमोली खरीदने की इफको की घोषणा ने इसके उत्पादन को बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। पाठकों को याद होगा कि इफको के प्रबंध निदेशक डॉ यू.एस.अवस्थी ने पूर्व में हुई एजीएम को संबोधित करते हुए घोषणा की थी कि “कोई भी व्यक्ति इफको के किसी भी केंद्र में जाकर निमोली बेच सकता है”।

मामले को आगे बढ़ाते हुए इफको ने सरकारी संस्था एफआरआई के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया और एफआरआई को तीन वर्षीय परियोजना की पहली किस्त के तौर पर 21 लाख का चेक सौंपा। आज इसी पहल का फल सामने आया है, मार्केटिंग डायरेक्टर योगेन्द्र कुमार ने माना।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी कहना है कि नीम-लेपित यूरिया मिट्टी के स्वास्थ्य को बनाए रखता है और ये फसल के लिए कीटनाशक का भी काम करता है। वे इसके बढ़ते उपयोग पर भी अपने भाषणों में जोर देते रहे हैं।

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