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आरबीआई के बीओएम के निर्णय का सहकार भारती ने किया विरोध

100 करोड़ या फिर उससे अधिक रुपये के डिपॉजिट वाले यूसीबी के लिए अनिवार्य प्रबंधन बोर्ड (बीओएम) बनाने के बारे में आरबीआई की प्रेस रिलीज़ की पृष्ठभूमि पर सहकार भारती ने जनवरी, 2020 को मुंबई में प्रबंध समिति की आपातकालीन बैठक बुलाई।

बैठक में बीओएम के अनिवार्य प्रावधान पर दिशानिर्देशों पर पुनर्विचार करने के लिए आरबीआई से अपील करने का संकल्प सर्वसम्मति से पारित हुआ। बाद में सहकार भारती ने आरबीआई को एक पत्र भी दियाजिसकी एक प्रति भारतीय सहकारिता के पास है।

पत्र में सहकार भारती ने आरबीआई को याद दिलाया है कि पूरे देश में सहकार भारतीराष्ट्रीय और राज्य संघों और सहित पूरे यूसीबी क्षेत्र ने इस अवधारणा का विरोध किया है क्योंकि यह अव्यावहारिक है।

बीओएम आरबीआई के प्रति जवाबदेह होने के साथऔर चुने गए बोर्ड को हितधारकों के प्रति जवाबदेह होने के कारणयह आशंका है कि निर्णय लेने के लिये केंद्र उभरेंगे जिसके परिणामस्वरूप विवाद और असमानता होगी तथा यूसीबी के कामकाज प्रभावित होंगे”, पत्र में कहा गया है।

पत्र पर सहकार भारती के अध्यक्ष रमेश वैद्य और इसके राष्ट्रीय महासचिव डॉ उदय जोशी ने हस्ताक्षर किए हैं “वर्तमान में, आरबीआई दिशानिर्देशों के अनुसार, अनिवार्य रूप से दो विशेषज्ञ निदेशक पहले से ही यूसीबी के निदेशक मंडल में कार्य कर रहे हैं।बीओएम की नियुक्ति केवल दोहराव है और इससे यूसीबी की निर्णय लेने की प्रक्रिया में बड़ी गड़बड़ी हो सकती है।

पत्र में सहकार भारती ने बताया कि, हमारी हमेशा यह मांग रही है कि बैंकिंग विनियमन अधिनियम में संशोधन करके आरबीआई को सभी हितधारकविशेषकरजमाकर्ताओं के हितों की रक्षा के लिए पूर्ण नियामक अधिकार दिए जाएं।

हम दृढ़ता से मानते हैं कि बीओएम का गठन करने से जमाकर्ताओं के हितों की सुरक्षा का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। सहकार भारती का दृढ़ मत है कि यूसीबी के अंतिम शासन को पूरी तरह से आरबीआई के पास निहित किया जाना चाहिए”, पत्र कहता है।

संकल्प में सर्वसम्मति से माननीय वित्त मंत्री से भी अपील की गई है कि आगामी सत्र मेंयूसीबी के संबंध में पूर्ण नियामक अधिकार देने के लिए बैंकिंग विनियमन अधिनियम में संशोधन करने के लिए विधेयक लाया जाये”प्रबंध समिति ने मांग की।

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