कॉरपोरेटर

कुरियन: धर्म मानकर लोगों का सशक्तिकरण करने वाले एक कर्मयोगी

एच. के. पाटिल

मेरी राय में डॉ. कुरियन आजादी के बाद भारत के शीर्ष भारतीय में से एक है जिन्होंने हमारे देशवासियों, विशेष रूप से किसानों के जीवन की बेहतरी के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिसे आंका नही जा सकता।

उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि दूध से कमी और दूध से भूखा भारत दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र बन पाया है। उनकी प्रसिद्ध अभिव्यक्ति “मैं सशक्तिकरण के कारोबार में हूँ और दूध तो बस इसमें एक उपकरण मात्र है”

दूध और सहकारी क्षेत्र में डॉ. कुरियन के प्रवेश की कहानी उनके आनंद गाथा के रुप में बहुत अच्छी तरह से प्रलेखित है। गुजरात के सुदूर देहात में प्रौद्योगिकी से लेस युवक के रुप में उनकी यात्रा शुरु हुई वह आगे चलकर लाखों ग्रामीण लोगों के लिए मसीहा बने उनकी यात्रा वास्तव में प्रेरणादायक है।

मैं व्यक्तिगत रूप से एक तथ्य से चकित और प्रभावित हूँ कि एक ही व्यक्ति में सच्चे कॉपरेटर और आम लोगों को सशक्त बनाने वाला खुले दिमाग का टेक्नोक्रेट का संयोजन कैसे संभव है, यह अविश्वसनीय है।

श्री त्रिभुवनदास किशीभाई पटेल ने मजबूत इच्छा के साथ सच्चा गांधीवादी और एक सहकारी नेता ने गुजरात में सहकारिता के माध्यम से ग्रामीणों के जीवन में सुधार लाने के लिए और डॉ. कुरियन एक युवा टेक्नोक्रेट ने साथ मिलकर न केवल खुद के लिए बल्कि राज्य और देश के लिए एक क्रांतिकारी की तरह कार्य किया है।

यह हमारा भाग्य हो सकता है कि ऐसे कई सहकारी नेताओं और टेक्नोक्रेट का संयोजन हमें मिला है जिसकी सहायता से हम आने वाले सालों में सहकारिता को बहु राष्ट्रीय और कॉर्पोरेट स्तर पर ले जा सकते हैं, जिससे भारत को आर्थिक महाशक्ति के रूप में विकसित होने की उम्मीद है।
डॉ. कुरियन का आनंद मॉडल कॉर्पोरेट का सबसे अच्छा विकल्प और विकास के फल को समान रुप से  वितरण करने के लिए है।

जबकि उन्होंने सहकारी समितियों के माध्यम से लाखों देशवासियों को सशक्त बनाया, तथ्य यह है कि डॉ. कुरियन ने सशक्तिकरण के लिए दूध को चुना जिसमें महिलाओं की भागीदारी अधिक थी।

“श्वेत क्रांति” जिसका प्रवर्तक सबसे प्रसिद्ध “दूधवाला” था, इतिहास में एक कहानी के रुप में जाना जाता है जिस पर हर भारतीय को गर्व है।

डॉ. कुरियन सत्ता और नौकरशाही के गलियारों को लेकर परेशान थे। प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री लाल बहादुर शास्त्री अमूल मॉडल से बहुत अधिक प्रभावित हुए। वह चाहते थे कि डॉ. कुरियन इसे लेकर एक संस्थान बनाए ताकि
देश के अन्य भागों में भी इस मॉडल को दोहराया जा सके। यह राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की उत्पत्ति थी।

हालांकि संस्थान की स्थापना की जिम्मेदारी स्वीकार की परंतु डॉ. कुरियन ने इसका मुख्यालय आनंद में डालने की शर्त रखी, जिसके लिए शास्त्रीजी आसानी से सहमत हो गए।

एनडीडीबी ने अमूल मॉडल के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए और अन्य राज्यों में इसे दोहराने के लिए बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुछ वर्षों के बाद उन्होंने बोर्ड की बागडोर अपने शिष्य सुश्री अमृता पटेल को सौंप दी थी। जिन्हें एनडीडीबी के लिए एक पाठ्यक्रम के लिए काम पर रखा और उन्होने  डॉ. कुरियन से अलग कार्य किया लेकिन फिर भी सफल रही।

डॉ. कुरियन ने पिछले कुछ वर्षों में देश में सम्माननीय प्रबंधन संस्थानों में से एक आईआरएमए (इंस्टीट्यूट ऑफ रूरल मैनेजमेंट) को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

कहा जाता है कि पॉलसन्स किसानों का शोषण करने के लिए जाना जाता था जब आनंद में दूध सहकारी समितियों ने डेयरी उत्पादों को बाजार में लाने का फैसला किया तो उसके साथ 1949 में एक नए ब्रांड अमूल बनाने के साथ ही एक असमान लड़ाई छिड़ गई थी। जिसमें वे बेहद सफल रहे और अमूल ने कॉर्पोरेट के नाम को मिटा दिया।

डॉ. कुरियन ने भी सुनिश्चित किया कि दूध और दूध उत्पादों के कारोबार से सबसे ज्यादा फायदा  किसान का हो जो अपना दूध स्थानीय सहकारी संगठनों को बेचता है। हालांकि वर्तमान में बड़ी संख्या में निजी कंपनियों ने डेयरी क्षेत्र में प्रवेश किया है, लेकिन फिर भी मूल्य निर्धारण की प्रणाली से किसानों के लाभ अमूल और एनडीडीबी द्वारा बेंचमार्क है सभी कंपनियों के द्वारा इस पर अमल किया जा रहा है।

डॉ. कुरियन एक ऐसे व्यक्ति है जिन्हें भावी पीढ़ी द्वारा याद किया जाएगा। उन्होने विकास और आम जनता की भलाई के सशक्तिकरण को अपने कर्मों से साबित करके दिखाया। जिन संरचनाओं और प्रणालियों को उन्होने बनाया है वह उनके समर्पण और दृढ़ विश्वास की गवाही दे रहे है।
अथक प्रयासों से इस योद्धा की आत्मा की शांति के लिए हम सभी सहकारी कार्यकर्ताओं को सहकारिता के माध्यम से कम सुविधाप्राप्त भाइयों और बहनों के आर्थिक सशक्तिकरण का प्रयास करना चाहिए।

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