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डीपीटी की शोक सभा में सहकारी नेताओं की रही प्रभावशाली उपस्थिति

दिग्गज राजनेता देवी प्रसाद त्रिपाठी के निधन पर आयोजित शोक सभा में इफको के एमडी की अगुवाई में बड़ी संख्या में मौजूद लोगों के साथ सहकारी नेताओं की मौजूदगी काफी दमदार थी।

दिल्ली में सोमवार को कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में आयोजित शोक सभा में दिल्ली के विशिष्ट लोग डीपीटी के प्रति अपनी भावनाओं और प्रेम व्यक्त करने के लिए उपस्थित थे। एक सच्चे राजनेता की तरह, डीपीटी ने अपनी मृत्यु में भी नेताओं के राजनीतिक मतभेदों को दूर करने में समर्थ हुये। प्रकाश करात और सीताराम याचुरी ने रविशंकर प्रसाद और राजीव प्रताप रूडी के संग कंधे से कंधा मिलाते हुए दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि दी।

डीपीटी को याद करते हुये के सी त्यागी ने कहा कि डीपीटी जैसे सरीखे लोग बिरले ही मिलते है और उनकी कॉपी नहीं बनाई जा सकती है। प्रकाश करात ने कहा कि हालांकि में पुनर्जन्म में विश्वास नहीं रखता लेकिन प्रर्थना करता हूं की जो इसमें विश्वास रखते है उन्हें डीपीटी फिर मिल जाए!

याचुरी ने जेएनयू कैंपस में डीपीटी के साथ बिताए अपने जीवन के कई दिलचस्प प्रसंग सुनाए। ज्ञात हो की दोनों साथ-साथ जेएऩयू की स्टूडेंट पॉलिटिक्स में सक्रिय थे।

कॉन्स्टिट्यूशन क्लब का खचाखच भरा हॉल इस बात का गवाह था कि लोग कितनी गहराई से उन्हें चाहते थे। अपने जीवन में डीपीटी ने सब को स्नेह दिया चाहे वे किसी जाति ,पंथ या राजनीति दल के हों। इस सभा में कई वक्ताओं ने बताया कि डीपीटी ने कैसे हर एक-एक के जीवन को किसी न किसी रूप में छूआ। पावन वर्मा ने डीपीटी को याद करते हुए कहा की सब मानते थे कि वे डीपीटी के सबसे करीबी दोस्त हैं।

पाठकों को ज्ञात हो कि सहकारी आंदोलन के चैंपियन डीपीटी ने पिछले सप्ताह- गुरुवार की सुबह अंतिम सांस ली। वह 68 वर्ष के थे। यूपी के सुल्तानपुर में जन्मे त्रिपाठी जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे और आपातकाल के दौरान जेल भी गए थे।

राजनीतिक वर्ग में एक विचारक के रूप में जाने-जाने वाले त्रिपाठी राजीव गांधी के करीबी सहयोगी थे और बाद में एनसीपी में शामिल हो गए जहां वह अपने निधन तक रहे।

त्रिपाठी इफको के साथ भी जुड़े रहे हैं और इसके कार्यक्रमों में प्रायः देखे जाते थे। इफको की सफलता से संकेत लेते हुए, वह अक्सर को-ऑप मॉडल के वर्चस्व की वकालत करते थे। इफको एम डी डॉ यू एस अवस्थी की प्रशंसा वह कई बार खुले मंच से किया करते थे। उनका मानना था कि देश में को-ऑप आंदोलन को मजबूत करने के ऐसे व्यक्तित्व का समर्थन किया जाना चाहिए।

वह “इफको शुक्ल पुरस्कार” से भी जुड़े हुए थे और इफको को भारत के कुछ ऐसे सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक व्यक्तियों को खोजने में मदद की जो ग्रामीण जीवन की थीम पर लिखते हैं।

“भारतीयसहकारिता” भी दिवंगत महान आत्मा को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करती है।

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