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आरबीआई ने शंकरराव मोहिते पाटिल सहकारी बैंक का बैंकिंग लाइसेंस किया रद्द

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने “शंकर राव मोहिते पाटिल सहकारी बैंक लिमिटेड, अकलुज” का लाइसेंस रद्द कर दिया है। इस निर्णय के परिणामस्वरूप, बैंक 11 अप्रैल 2025 को कारोबार की समाप्ति के बाद बैंकिंग से संबंधित किसी भी प्रकार का लेनदेन नहीं कर सकेगा।

आरबीआई ने महाराष्ट्र राज्य के सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार से अनुरोध किया है कि वे बैंक के समापन (लिक्विडेशन) की प्रक्रिया शुरू करें और इसके लिए एक परिसमापक (लिक्विडेटर) की नियुक्ति करें।

आरबीआई के अनुसार, बैंक के पास पर्याप्त पूंजी और आय की संभावनाएं नहीं हैं, और यह बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 56 के साथ पठित धारा 11(1) और 22(3)(डी) के प्रावधानों का अनुपालन नहीं करता है। साथ ही, यह बैंक अधिनियम की धारा 22(3)(ए), 22(3)(बी), 22(3)(सी), 22(3)(डी), और 22(3)(ई) का भी पालन करने में विफल रहा है।

आरबीआई ने स्पष्ट किया है कि बैंक का बने रहना जमाकर्ताओं के हितों के प्रतिकूल है। वर्तमान वित्तीय स्थिति के आधार पर, बैंक अपने जमाकर्ताओं को उनकी पूरी राशि लौटाने में असमर्थ होगा। यदि बैंक को आगे संचालन की अनुमति दी जाती, तो यह जनहित पर प्रतिकूल प्रभाव डालता।

लाइसेंस रद्द होने के बाद बैंक अब धारा 5(बी) के अंतर्गत परिभाषित ‘बैंकिंग कार्य’ जैसे जमाएं स्वीकार करना और उनकी वापसी करना, सहित किसी भी बैंकिंग गतिविधि को अवैध रूप से जारी नहीं रख सकता।

बैंक के परिसमापन के पश्चात, प्रत्येक जमाकर्ता को नि‍क्षेप बीमा और प्रत्यय गारंटी निगम (डीआईसीजीसी) अधिनियम, 1961 के तहत अधिकतम 5,00,000/- (पाँच लाख रुपये मात्र) तक की बीमा राशि प्राप्त करने का अधिकार होगा।

आरबीआई द्वारा साझा किए गए आँकड़ों के अनुसार, 99.72% जमाकर्ता अपनी पूरी जमा राशि डीआईसीजीसी से प्राप्त करने के पात्र हैं। 31 मार्च 2025 तक, डीआईसीजीसी ने 47.89 करोड़ रुपये की बीमाकृत राशि का भुगतान पहले ही जमाकर्ताओं को कर दिया है, जिनसे इस संबंध में सहमति प्राप्त हुई थी।

इस कार्रवाई से यह स्पष्ट है कि भारतीय रिज़र्व बैंक वित्तीय प्रणाली की पारदर्शिता, जवाबदेही, और जमाकर्ताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।

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