सहकारी नेताओं ने एनसीयूआई की गवर्निंग काउंसिल की पिछले सप्ताह हुई बैठक में एनसीडीसी के कार्यक्षेत्र में विस्तार करने के फैसले का विरोध किया है। पाठको को याद होगा कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने एनसीडीसी के कार्यक्षेत्र में विस्तार करने के लिए निजी क्षेत्र को शामिल करने का विचार रखा है।
एनसीयूआई के अध्यक्ष डॉ चंद्र पाल सिंह यादव ने भारतीयसहकारीता” से बात करते हुए कहा, “हमने उक्त कदम का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है जिसे जीसी सदस्यों द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया।” बता दें कि बोर्ड की बैठक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई थी जिसमें एनसीयूआई अध्यक्ष ने झांसी से बैठक में भाग लिया।
यादव ने आगे कहा कि, एनसीडीसी की स्थापना सहकारी समितियों को सुदृढ़ बनाने और प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से की गई थी।
जीसी में रखे गये प्रस्ताव के बारे में जानकारी देते हुए, चंद्र पाल ने कहा कि इस मुद्दे पर एनसीयूआई का प्रतिनिधिमंडल लॉकडाउन के बाद सरकार से मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह बहुत गंभीर मामला है जिसे कतई हल्के में नहीं लिया जा सकता।
वहीं एनसीयूआई के मुख्य कार्यकारी एन सत्यनारायण ने बताया कि एनसीयूआई की तकनीकी टीम की मदद से आयोजित की गई गवर्निंग काउंसिल की आभासी बैठक में लगभग सभी सदस्य उपस्थित थें। कोविड के मद्देनजर 2-3 सदस्यों को छोडकर सभी ने अपनी भागीदारी दर्ज कराई।
जीसी बैठक में वार्षिक रिपोर्ट और वार्षिक खातों के पारित होने के अलावा, एनसीयूआई से संबंधित तीन लंबित मामलों को भी बैठक में उठाया गया। सत्यनारायण ने कहा, “जीसी में सदस्यों ने कोविड-19 पर जागरूकता फैलाने और वायरस से लड़ने में सरकार के प्रयासों को मजबूत करने का संकल्प लिया है।”
परंतु इन सबसे बढ़कर, सदस्य इस खबर को लेकर आंदोलित थे कि एनसीडीसी का उधार देने का कार्य एक मूलभूत रूपान्तरण से गुजर रहा है और यह कि निजी क्षेत्र भी एनसीडीसी से ऋण का लाभ उठा सकता है।
इससे पहले, हमने बताया था कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधिकारियों के एक समूह ने निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिए एनसीडीसी के ग्राहक आधार के विस्तार के विचार को पेश किया है। जीसी सदस्यों ने तर्क दिया कि, देश में कई बैंक और वित्तीय संस्थान हैं, जहां से निजी क्षेत्र ऋण ले सकते हैं, तो सहकारी क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने वाली संस्था एनसीडीसी के कार्यक्षेत्र में विस्तार क्यों किया जा रहा है, उन्होंने पूछा।
सहकार भारती और नेफकॉब ने भी इस मुद्दे पर मंत्रालय को पत्र लिखा है, जिसमें इस विचार को छोड़ देने का आग्रह किया है।