विशेष

एनसीसीएफ बोर्ड एमडी की नियुक्ति करने में विफल रहा

राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ की (एनसीसीएफ) सोमवार को आयोजित बैठक एक बार फिर से प्रबंध निदेशक की नियुक्ति करने में असफल रही है। बोर्ड उम्र की छूट के मुद्दे पर आम सहमति बनाने में विफल रहा है। इसके बाद चयन समिति को खत्म कर दिया गया और पूरी प्रक्रिया फिर से शुरु किया जाना है।

पोस्ट को एक बार फिर से विज्ञापित किया जाएगा और अब बोर्ड नए सिरे से नियुक्ति की शर्तें प्रतिपादित करेगा।

चयन समिति के चार सदस्यों में एनसीसीएफ के अध्यक्ष बीरेंद्र सिंह, नैफेड के अध्यक्ष बिजेन्दर सिंह, आवास संघ के अध्यक्ष सुखवीर सिंह और तकनीकी विशेषज्ञ श्री गुलाटी शामिल शामिल थे।

सूचीबद्ध उम्मीदवारों में से श्री अशोक चौधरी, आईआरटीएस अधिकारी और डीओपीटी अधिकारी की उम्र को गलत पाया गया। हालांकि पहले 57 साल थी, बाद में 58 साल कर दी गई। एनसीसीएफ के प्रबंध निदेशक की सेवानिवृत्ति की उम्र 58 साल है जिसका मतलब है कि उन्हें एनसीसीएफ से एक साल के बाद ही एनसीसीएफ से सेवानिवृत्ति होना होगा।

यह स्पष्ट है कि कोई भी इस बात से सहमत नही होगा।

चयन समिति को सरकारी मंजूरी मिली थी। सरकार ने भी इस बोर्ड की बैठक के माध्यम से एमडी की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने की अनुमति दे दी थी। लेकिन बोर्ड के इस संबंध में निर्णय नही लेने से एमडी की रेस में सबसे आगे अशोक चौधरी की नियुक्ति की उम्मीद ध्वस्त हो गई।

मंगलवार को हुई बोर्ड की बैठक में सात निर्देशकों ने भाग लिया और वे एमडी के उम्र बढ़ाने की बात से असहज महसूस कर रहे थे और उन्होने इस पर चिंता जताई और इसके विरोध में आवाज उठाई। इसके साथ ही एनसीसीएफ के नियमों में बदलाव की एक श्रृंखला आरंभ हुई  है। कुछ निदेशकों ने एनसीयुआई का बुरा अनुभव का उल्लेख किया है जो प्रवक्ताओं की नियुक्ति के मामलों में विवाद में फँस गई थी।

भारतीय सहकारिता से बात करते हुए निदेशक विशाल सिंह ने कहा कि “वहाँ कुछ तकनीकी मुद्दों के अलावा  उम्र से संबंधित मुद्दे भी थे। समय बदल गया है, लोग जागरूक हो गए हैं। आदमी को सावधान रहना चाहिए नही तो दिक्कतें आ सकती है।”

जब भारतीय सहकारिता ने वीरेन्द्र सिंह, एनसीसीएफ के अध्यक्ष से इस मुद्दे पर उनकी प्रतिक्रिया जानना चाहा तो उन्होने इस विषय पर बात करने से मना कर दिया और एनसीसीएफ द्वारा अर्जित किए गए 3 करोड़ रुपये के लाभ पर काफी देर तक बोलते रहे।

वीरेंद्र सिंह के आलोचकों का कहना है कि अशोक चौधरी, वीरेंद्र के  उम्मीदवार थे। श्री अशोक चौधरी, एक संवर्ग अधिकारी (आईआरटीएस) केन्द्रीय रेल पक्ष भण्डारण कंपनी लिमिटेड (सीडब्ल्यूसी) में प्रबंध निदेशक थे, जहां वीरेन्द्र सिंह पिछले 14 वर्षों के लिए निदेशक है।

भारतीय सहकारिता ने अपने प्रयासों से पता किया है कि चौधरी की नियुक्ति के प्रयास काफी समय से चल रहे थे।

वीरेन्द्र सिंह के समर्थको का तर्क है कि अमेरिकी राष्ट्रपति को भी अपनी प्रभावी टीम में गैर राजनीतिक व्यक्ति को मंत्री पद के लिए चुनने का अधिकार है, अध्यक्ष को भी अपनी पसंद का एमडी चुनने का मौका दिया जाना चाहिए। हमें उन्हे उनके काम  से मापना चाहिए, ना कि छोटे विचारों  से।

विश्वसनीय सूत्रों ने भारतीय सहकारिता को बताया कि अधिक से अधिक सहकारी नेता और कुछ अधिकारी नियुक्ति में देरी की रणनीति पर काम कर रहे हैं। वे अनुपस्थित प्रबंध निदेशक के कारण अपने पद के साथ सभी कई सुविधाओं और भत्तों से लाभांवित हो रहे हैं।

एनसीसीएफ और इसके अध्यक्ष ने अतीत में कृषि सहकारिता के लिए एक बड़ी भूमिका की घोषणा की है। यह वास्तव में नैफेड के घटते महत्व के मद्देनजर एक अहम संगठन के रुप में उभरा है। लेकिन यह कई वर्ष से नियमित एमडी के बिना कार्य कर रहा है। पुनर्विज्ञापन का मतलब एक अंतहीन प्रक्रिया है। इस बीच निहित स्वार्थ इस स्थिति का फायदा उठाते रहेंगे।

Tags
Show More

Related Articles

Back to top button
Close