
मल्टी-स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटीज़ अधिनियम, 2002 के तहत गठित मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने राष्ट्रीय मत्स्य सहकारी संघ लिमिटेड (फिशकॉफेड) के वर्ष 2021 में निर्वाचित बताए जा रहे बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के कार्य करने पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह रोक मध्यस्थता कार्यवाही के अंतिम निर्णय तक लागू रहेगी।
केंद्रीय सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार द्वारा नामित एकल मध्यस्थ एवं सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी कल्याण सहाय मीणा की अध्यक्षता में न्यायाधिकरण ने यह आदेश मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 17 के तहत पारित किया। यह विवाद मल्टी-स्टेट को-ऑपरेटिव सोसायटीज़ अधिनियम, 2002 की धारा 84 के अंतर्गत मध्यस्थता के लिए संदर्भित किया गया था।
न्यायाधिकरण ने अंतरिम आदेश में कथित 2021 बोर्ड से जुड़े सभी व्यक्तियों को मध्यस्थता की अवधि के दौरान बोर्ड सदस्य के रूप में कार्य करने से रोक दिया है। न्यायाधिकरण ने कहा कि बोर्ड की वैधता से जुड़े प्रश्नों पर अंतिम निर्णय होने तक अंतरिम संरक्षण आवश्यक है।
न्यायाधिकरण ने यह भी निर्देश दिया है कि सक्षम प्राधिकारी, सहकारिता मंत्रालय, मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय अथवा केंद्रीय सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार, फिशकॉफेड के कार्य संचालन के लिए शीघ्र एक प्रशासक नियुक्त करें।
आदेश के अनुसार, प्रशासक प्रशासनिक और परिचालन से जुड़े मुद्दों, कर्मचारियों के कार्य में बाधा तथा वेतन भुगतान से संबंधित शिकायतों को देख सकेगा। यह व्यवस्था मध्यस्थता के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगी।
इसके अलावा, न्यायाधिकरण ने एस.एस. महौर और पी.के. चौधरी को फिशकॉफेड में किसी भी प्रकार का कार्य करने से रोक दिया है। दोनों के संबंध में कहा गया है कि वे सेवानिवृत्ति के बाद विस्तारित सेवाओं पर कार्यरत बताए जा रहे हैं, और बोर्ड की स्थिति स्पष्ट होने तक उनकी भूमिका निलंबित रहेगी।
न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को यथास्थिति पूर्व के आधार पर पुनः सेवाओं में लौटने का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, जिन नियमित कर्मचारियों को पहले कार्यालय आने से रोका गया था, उन्हें अब कार्यालय आने की अनुमति दी गई है।
अंतरिम आदेश की प्रति संबंधित मंत्रालयों और केंद्रीय सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को आवश्यक कार्रवाई के लिए भेज दी गई है। आदेश के पालन में किसी भी चूक की स्थिति में पक्षकार न्यायाधिकरण का रुख कर सकते हैं।
यह विवाद फिशकॉफेड के वर्ष 2021 के बोर्ड चुनाव की वैधता से जुड़ा है, जिसे रामदास पी. सांधे और अन्य ने चुनौती दी थी और बाद में इसे मध्यस्थता के लिए भेजा गया।



