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विश्व बैंक की रिपोर्ट में कमजोर पूंजी वाले सहकारी बैंकों पर चिंता

विश्व बैंक ने भारत का वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की है, जो इस वर्ष की शुरुआत में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से किए गए वित्तीय क्षेत्र मूल्यांकन कार्यक्रम पर आधारित है। उल्लेखनीय है कि आईएमएफ ने फरवरी 2025 में अपनी संबंधित रिपोर्ट ‘फाइनेंशियल सिस्टम स्टेबिलिटी असेसमेंट’ प्रकाशित की थी, जिसमें भारत की वित्तीय स्थिरता और नियामक ढांचे का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत किया गया था।

रिपोर्ट में भारतीय रिज़र्व बैंक की सराहना की गई है कि उसने सहकारी बैंकों पर अपनी नियामक निगरानी को 2017 के बाद उल्लेखनीय रूप से सुदृढ़ किया है। आरबीआई ने अब सभी शहरी सहकारी बैंकों सहित सभी संस्थाओं के लिए एकीकृत नियमन और पर्यवेक्षण ढांचा लागू किया है तथा उल्लंघनों पर समान दंडात्मक कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए एक प्रवर्तन विभाग की स्थापना की है।

रिपोर्ट के अनुसार, शहरी सहकारी बैंक क्षेत्र समग्र रूप से मजबूत और लचीला बना हुआ है, और तनावपूर्ण परिस्थितियों में भी औसत पूंजी पर्याप्तता अनुपात लगभग 31 प्रतिशत दर्ज किया गया है।

हालांकि, रिपोर्ट में यह भी संकेत दिया गया है कि 20–22 सहकारी बैंक अभी भी न्यूनतम नियामक पूंजी आवश्यकताओं से नीचे जा सकते हैं। यह कमी मुख्यतः ऋण हानि प्रावधानों में वृद्धि के कारण है।

रिपोर्ट में आरबीआई के प्रयासों की प्रशंसा की गई है, जिनमें सहकारी बैंकिंग नियमन को सुदृढ़ करना, पर्यवेक्षण दक्षता में सुधार, और छोटे बैंकों के लिए साइबर सुरक्षा ढांचे को अनुकूल बनाना शामिल हैं।

विश्व बैंक ने यह भी उल्लेख किया कि सहकारी बैंकों की बढ़ती डिजिटल उपस्थिति और भुगतान प्रणालियों में एकीकरण के चलते साइबर लचीलापन को और मजबूत करने की आवश्यकता है। आरबीआई ने इसके लिए फिशिंग सिमुलेशन, साइबर ड्रिल्स और आईटी रिस्क असेसमेंट जैसे कदम उठाए हैं।

रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि पूरे बैंकिंग क्षेत्र में संकट सिमुलेशन और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर रिकवरी समय निर्धारण जैसे मापदंड तय करके साइबर सुरक्षा को और सुदृढ़ किया जा सकता है।

एफएसए रिपोर्ट ने यह भी माना कि सहकारी और क्षेत्रीय बैंक भारत के प्राथमिक क्षेत्र ऋण लक्ष्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। शहरी सहकारी बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अपनी कुल ऋण राशि का 75 प्रतिशत तक प्राथमिक क्षेत्र में देकर वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दे रहे हैं, हालांकि अनुपालन लागतमें वृद्धि भी सामने आई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि यह आकलन भारत के मजबूत सहकारी बैंकिंग नेटवर्क और आरबीआई की प्रगतिशील निगरानी नीति को रेखांकित करता है, साथ ही पूंजी सुदृढ़ीकरण, जोखिम प्रबंधन और डिजिटल लचीलापन पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता को भी उजागर करता है।

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