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एनसीयुआई को गहन आत्मविश्लेषण की जरुरत

इन दिनों भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ, देश में अपने सदस्यों के बीच सदस्यता संतुष्टि सर्वेक्षण कर रहा है। सभी सहकारी महासंघों के सदस्यों को प्रतिक्रिया के लिए प्रश्नावली का एक नमूना भेजा गया है।

जैसा कि पहले भी बताया गया है कि एनसीयुआई का अस्तित्व संकट में है।

सर्वेक्षण एक आत्मविश्लेषण का एक प्रयास है। एनसीयुआई को पिछले कुछ वर्षों से सरकार की ओर से असहयोग और घोटालों के कारण विश्वास की कमी का सामना करना पड़ रहा है, यही कारण है कि इस तरह का सर्वेक्षण किया जा रहा है।

सर्वेक्षण में इस तरह के  सवाल पूछे गए है: क्या आपको लगता है कि एनसीयुआई की गतिविधियाँ आपकी आवश्यकताओं के मुताबिक हैं, आपका एनसीयुआई के साथ आपकी संतुष्टि का स्तर क्या है, सरकार की नीति तैयार करने में एनसीयुआई की भूमिका को आप कैसे देखते हैं, पिछले एक वर्ष में एनसीयुआई का प्रदर्शन कैसा रहा?

यह स्पष्ट है कि शीर्ष संगठन बदली हुई स्थिति के साथ तालमेल की कोशिश में है। वह यह जानता है कि  उसको अपने स्वयं के बल पर ही अस्तित्व में रहना है। उसकी ताकत सहकारी महासंघों के सदस्य है जिनकी कुल संख्या 204 है।

उसकी सूची में शामिल सदस्य,

नेशनल फेडरेशन-17, बहु राज्य सहकारी-सोसायटी 38, राज्य सहकारी संघों-31, राज्य सहकारी बैंकों-18, राज्य सहकारी कृषि और ग्रामीण बैंक-14, विपणन संघ-16, उपभोक्ता फेडरेशन-8, हाउसिंग फेडरेशन-10, शहरी फेडरेशन-10, जनजातीय फेडरेशन-2, अन्य फेडरेशन-23 और विविध-17.

एनसीयुआई अपने सदस्यों को उतनी गंभीरता से नही ले रहा है जितनी गंभीरता से लेना चाहिए। उनके बिना देश में सहकारी आंदोलन को कायम करने का सपना देखने का मतलब , सरकार की बैसाखी पर खड़े होना है।

204 सहकारी महासंघों का एक साथ होना एक उपलब्धि है और यह एनसीयुआई और सहकारी आंदोलन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त है।

सहकारी आंदोलन की सफलता की कहानी अहम व्यक्तियों के कारण है ना कि एनसीयुआई के कारण ।

जब वह खुद को ठीक और सदस्यों की मदद से अपने अस्तित्व को मजबूत बनाकर रखेगा सहकारी आंदोलन को उतना ही बल मिलेगा। सरकार से वेतन और भत्तों के द्वारा जीवित रहने के लिए मदद मिल सकती है लेकिन यह स्थिति आंदोलन आगे नहीं ले जा सकती। केवल सहकारी कार्यकर्ता ही इस काम को कर सकते हैं।

 

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