
लखनऊ स्थित बर्ड में पिछले सप्ताह शुक्रवार को सहकारी बैंकों की कृषि ग्राउंड लेवल क्रेडिट (जीएलसी) में हिस्सेदारी बढ़ाने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय परामर्श बैठक आयोजित की गई। यह कार्यक्रम बर्ड, नाबार्ड और नाबकॉन्स के संयुक्त तत्वावधान में हुआ। बैठक का विषय “कृषि क्षेत्र में ग्राउंड लेवल क्रेडिट प्रवाह में ग्रामीण सहकारी बैंकों की हिस्सेदारी में सुधार” था।
पूरे दिन चली इस बैठक में देशभर के जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों और राज्य सहकारी बैंकों के प्रतिनिधियों ने सक्रिय भागीदारी की। विभिन्न विषयगत सत्रों व समूह चर्चाओं में नीति सुधार, सुशासन, संसाधन जुटाव, व्यवसाय विविधीकरण तथा तकनीक अपनाने जैसे मुद्दों पर विस्तृत विचार-विमर्श किया गया।
बैठक के दौरान नाबार्ड ने सहकारी बैंकों की कृषि ऋण हिस्सेदारी बढ़ाने के उपाय सुझाने हेतु एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति के गठन की घोषणा की। समिति की अध्यक्षता पूर्व सीजीएम के. एस. रघुपति करेंगे, जबकि सदस्य के रूप में पूर्व सीजीएम एस. विजयलक्ष्मी और तेलंगाना स्टेट कोऑपरेटिव एपेक्स बैंक के पूर्व एमडी नेथी मुरलीधर को शामिल किया गया है। समिति को इस माह के अंत तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं।
कार्यक्रम की शुरुआत बर्ड के निदेशक डॉ. निरूपम मेहरोत्रा के स्वागत भाषण से हुई। इसके बाद नाबार्ड के मुख्य महाप्रबंधक सुब्रत कुमार नंदा ने उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। प्रतिनिधियों को विभिन्न विषयगत समूहों में विभाजित कर नीतिगत सुधार, सुशासन, संसाधन जुटाव, क्रेडिट संवर्धन, व्यवसाय विविधीकरण और तकनीकी हस्तांतरण पर गहन चर्चाएँ कराई गईं।
संस्थागत सुदृढ़ीकरण एवं सुशासन पर सत्र का संचालन एस. विजयलक्ष्मी ने किया, जबकि हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक के प्रबंध निदेशक शर्वन मंटा सत्र नेता रहे। इस सत्र में कृष्णा डीसीसीबी के सीईओ श्याम मनोहर, खेड़ा डीसीसीबी के सीईओ अरविंदभाई टक्कर और लुधियाना डीसीसीबी के हरनेट सिंह सहित कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।
अन्य सत्रों में भी डीसीसीबी और एसटीसीबी के प्रतिनिधियों ने जमीनी अनुभव साझा किए और सहकारी बैंकिंग ढांचे को मजबूत बनाने हेतु व्यावहारिक सुझाव प्रस्तुत किए। दिन के अंत में सभी समूहों ने अपनी सिफारिशें साझा कीं, जिनसे भविष्य की नीतिगत कार्रवाइयों को दिशा मिलने की संभावना है।
वित्त वर्ष 2024 में सहकारी बैंकों ने कृषि क्षेत्र में 2.3 लाख करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया, जो कुल ग्राउंड लेवल क्रेडिट (25.1 लाख करोड़ रुपये) का 9.2 प्रतिशत था। यह 2.6 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य से कम रहा। इस अवधि में वाणिज्यिक बैंकों की हिस्सेदारी 79 प्रतिशत और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत रही।
वित्त वर्ष 2025 में सहकारी बैंकों का कृषि ऋण वितरण बढ़कर 2.4 लाख करोड़ रुपये हुआ, परंतु 28.7 लाख करोड़ रुपये के कुल कृषि ऋण में उनकी हिस्सेदारी घटकर 8.4 प्रतिशत रह गई। लक्ष्य 3.0 लाख करोड़ रुपये का था। इस वर्ष वाणिज्यिक बैंकों की हिस्सेदारी 81 प्रतिशत और आरआरबी की हिस्सेदारी 10.8 प्रतिशत दर्ज की गई।
यह परामर्श बैठक सहकारी बैंकों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने और कृषि क्षेत्र में उनकी भूमिका को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।



