
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि सहकारी निर्वाचन प्राधिकरण बहु-राज्यीय सहकारी बैंकों के मामले में बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 10(2क) के संशोधित प्रावधानों के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।
उन्होंने कहा कि बैंककारी विनियमन अधिनियम, 1949 (बीआर अधिनियम) की धारा 10क (उपधारा 2क(i)) में हाल ही में किए गए संशोधनों के अनुसार, सहकारी बैंकों के निदेशकों (अध्यक्ष और पूर्णकालिक निदेशकों को छोड़कर) के अधिकतम नियमित कार्यकाल को आठ वर्ष से बढ़ाकर दस वर्ष किया गया है। यह प्रावधान 1 अगस्त, 2025 से लागू हो गया है।
राज्यसभा सदस्य शक्ति सिंह गोहिल द्वारा सहकारी बैंकों में निदेशकों की सेवा अवधि पर पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में वित्त मंत्री ने बताया कि गुजरात के 145 शहरी सहकारी बैंकों में 876 निदेशक आठ वर्षों से अधिक समय से अपने पद पर बने हुए हैं। इसके अतिरिक्त, गुजरात स्टेट कोऑपरेटिव बैंक और 15 जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों के 169 निदेशक भी इस सीमा से अधिक समय से पद पर बने हुए हैं।
नाबार्ड और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा दी गई सूचना के अनुसार, गांधीधाम मर्चेंटाइल कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, मेहमदाबाद अर्बन पिपुल्स कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड और तालोद नागरिक सहकारी बैंक लिमिटेड में 13-13 निदेशक आठ वर्षों से अधिक समय से पद पर हैं। वहीं जिला सहकारी बैंकों की श्रेणी में अहमदाबाद में 19 निदेशक, अमरेली, राजकोट और जूनागढ़ में 16-16 तथा गुजरात स्टेट कोऑपरेटिव बैंक में 15 निदेशक आठ वर्ष से अधिक समय से पद पर बने हुए हैं।
उन्होंने आगे कहा कि सहकारी बैंकों को अपने अध्यक्ष और निदेशक मंडल के लिए निर्धारित अर्हताओं का पालन करना होगा। भारतीय रिजर्व बैंक को अनुपयुक्त पाए जाने वाले अध्यक्ष को हटाने और यदि आवश्यक हो तो बोर्ड के पुनर्गठन का निर्देश देने का अधिकार दिया गया है। इसके अतिरिक्त, निदेशक मंडल के अधिक्रमण संबंधी भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकार को सभी सहकारी बैंकों के लिए बढ़ा दिया गया है। राज्य-पंजीकृत बैंकों के लिए यह कार्रवाई राज्य सरकार के परामर्श से की जाएगी।
“सहकारी बैंकों को अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के समान लेखा परीक्षा से गुजरना होता है, जिसमें आरबीआई के पास विशेष लेखा परीक्षा का आदेश देने और समापन प्रक्रिया का निरीक्षण करने का अधिकार होता है,” उन्होंने कहा।
सीतारमण ने कहा कि सहकारी बैंकों को आरबीआई की पूर्व मंजूरी के साथ जनता से इक्विटी और असुरक्षित ऋण पूंजी जुटाने की अनुमति है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिरता और परिचालन क्षमता बढ़ती है।