
देशभर के विफल सहकारी बैंकों के जमाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक समूह ने बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है, जिसमें डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (डीआईसीजीसी) अधिनियम, 1961 की प्रमुख धाराओं को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ताओं ने अधिनियम की धारा 16 और 21 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की है, यह तर्क देते हुए कि ये प्रावधान बीमा कवरेज को केवल 5 लाख रुपये तक सीमित करते हैं और परिसमापन के समय डीआईसीजीसी को जमाकर्ताओं से प्राथमिकता देते हैं।
यह याचिका कर्नाटक स्थित करवार अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक, महाराष्ट्र की साई नगरी सहकारी बैंक सहित कई बैंकों के जमाकर्ताओं की ओर से दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि वर्तमान व्यवस्था दुर्व्यवस्था और नियामकीय लापरवाही के कारण हुए बैंकों के पतन की सजा निर्दोष जमाकर्ताओं को भुगतनी पड़ रही है।
याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि डीआईसीजीसी बैंकों से पूरे जमा आधार पर प्रीमियम वसूल करती है, लेकिन जमाकर्ताओं को केवल 5 लाख रुपये तक का बीमा संरक्षण मिलता है, जो आज की आर्थिक परिस्थिति में “अत्यंत अपर्याप्त” है। इसके अलावा, कई मामलों में 90 दिनों की वैधानिक समय-सीमा के भीतर भुगतान न होने और डीआईसीजीसी के पास 1.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की अधिशेष राशि होने पर भी प्रश्न उठाए गए हैं।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत से मांग की है कि जमाओं के अनुपात में बीमा कवर दिया जाए, 90 दिनों के भीतर भुगतान की बाध्यता को सख्ती से लागू किया जाए, और डीआईसीजीसी के अधिशेष को जमाकर्ताओं के हित में पारदर्शी तरीके से उपयोग करने का तंत्र बनाया जाए।
इस मामले पर शीघ्र ही सुनवाई होने की संभावना है।