
केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने गुजरात के आणंद में देश की पहली सहकारी विश्वविद्यालय ‘त्रिभुवन सहकारी यूनिवर्सिटी’ का भूमि पूजन किया। इस अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल, केन्द्रीय सहकारिता राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर एवं मुरलीधर मोहोळ, सहकारिता मंत्रालय के सचिव डॉ. आशीष कुमार भूटानी समेत कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
अपने संबोधन में शाह ने कहा कि यह दिन सहकारिता क्षेत्र के इतिहास में मील का पत्थर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा त्रिभुवनदास पटेल को सच्ची श्रद्धांजलि देने के उद्देश्य से यह पहल की गई है। उन्होंने कहा कि पिछले चार वर्षों में सहकारिता मंत्रालय ने 60 से अधिक नई पहलों के माध्यम से सहकारिता को पारदर्शी, लोकतांत्रिक और समावेशी बनाने की दिशा में कार्य किया है।
शाह ने जानकारी दी कि यह विश्वविद्यालय 125 एकड़ में 500 करोड़ रुपए की लागत से तैयार की जाएगी। यह सहकारी शिक्षा, प्रशिक्षण, नीति निर्माण, डेटा विश्लेषण और दीर्घकालिक रणनीति तैयार करने का एक प्रमुख केंद्र बनेगा। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय में तकनीकी विशेषज्ञता, अकाउंटेंसी, मार्केटिंग और वैज्ञानिक सोच के साथ-साथ सहकारिता के मूल संस्कार भी सिखाए जाएंगे।
उन्होंने स्पष्ट किया कि अब सहकारी क्षेत्र में भर्ती उन्हीं अभ्यर्थियों की होगी, जिन्होंने यूनिवर्सिटी से प्रशिक्षण प्राप्त किया होगा। इससे भाई-भतीजावाद समाप्त होगा और पारदर्शिता आएगी।
शाह ने कहा कि देश में 30 करोड़ से अधिक लोग सहकारी आंदोलन से जुड़े हैं। उन्होंने बताया कि सरकार 2 लाख नए प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ (पैक्स) बना रही है, जिनमें से 60 हजार इस वर्ष के अंत तक बन जाएंगी। इसके लिए 17 लाख से अधिक प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होगी, जिसकी पूर्ति त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय करेगा।
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय अनुसंधान से लेकर नीतियों के निर्माण तक की भूमिका निभाएगा। यह सिर्फ सहकारी कर्मी नहीं, बल्कि त्रिभुवनदास पटेल जैसे प्रेरणादायक सहकारी नेता भी तैयार करेगा।
शाह ने कहा कि यह विश्वविद्यालय सहकारिता की नीतियों, नवाचार, अनुसंधान और प्रशिक्षण को एक मंच प्रदान करेगी। इससे सहकारिता के सभी पहलुओं को एकसमान ढांचा मिलेगा और यह सहकारिता के आर्थिक मॉडल को एक जनआंदोलन में बदलने का काम करेगी।
उन्होंने कहा कि सहकारिता क्षेत्र के लिए टैक्सी, इंश्योरेंस, बैंकिंग और अन्य क्षेत्रों में भी विशेषज्ञ मानव संसाधन की आवश्यकता होगी, जिसकी आपूर्ति यही विश्वविद्यालय करेगा।
शाह ने कहा कि इस विश्वविद्यालय का नाम सहकारिता के जनक त्रिभुवनदास किशिभाई पटेल के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने सरदार पटेल के मार्गदर्शन में खेड़ा जिले से अमूल आंदोलन की शुरुआत की थी। आज उसी आंदोलन के परिणामस्वरूप 36 लाख महिलाएं 80 हजार करोड़ रुपये का कारोबार कर रही हैं।
उन्होंने कहा कि “वसुधैव कुटुम्बकम्” और “सर्वे भवन्तु सुखिनः” जैसी भारतीय संस्कृति की अवधारणाएं ही सहकारिता की जड़ हैं और यही सोच भारत को दुनिया की सहकारिता राजधानी बनाएगी।