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ग्रामीण विकास में सहकारिता की अहम भूमिका: शिवराज सिंह चौहान

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले सप्ताह मुंबई में आयोजित ‘सहकार से समृद्धि 2025’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किया।

यह कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। इस मौके पर महाराष्ट्र के कृषि मंत्री माणिकराव कोकाटे, नाफेड अध्यक्ष जेठाभाई अहीर, इफको अध्यक्ष दिलीपभाई संघानी, एनसीसीएफ अध्यक्ष विशाल सिंह, गुजरात राज्य सहकारी बैंक अध्यक्ष अजय पटेल और नाफेड के प्रबंध निदेशक दीपक अग्रवाल सहित कई लोग उपस्थित थे।

अपने संबोधन में चौहान ने कहा कि सहकारिता केवल एक आर्थिक व्यवस्था नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक परंपरा का हिस्सा है। उन्होंने कहा, “संयुक्त राष्ट्र भले ही इस वर्ष को अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष के रूप में मना रहा हो, लेकिन भारत में सहकारिता की अवधारणा हजारों वर्षों से जीवित है।” उन्होंने भारतीय ऋषियों के उद्घोष “आत्मवत् सर्वभूतेषु” का उल्लेख करते हुए कहा कि सहकारिता का मूल उद्देश्य सभी के कल्याण की भावना है।

कृषि के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मंत्री ने कहा कि देश की 46 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है और यह क्षेत्र आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। उन्होंने बताया कि वह स्वयं किसान हैं और खेतों में ट्रैक्टर चलाते हैं।

चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में कृषि क्षेत्र में बीते 11 वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। खाद्यान्न उत्पादन में 44% की वृद्धि, लागत में कमी, फसल के उचित दाम, विविधिकरण और सतत कृषि की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं।

उन्होंने बताया कि सरकार की प्राथमिकता तीन प्रमुख लक्ष्यों पर केंद्रित है—देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, किसानों की आय बढ़ाना और सभी नागरिकों को पोषणयुक्त आहार उपलब्ध कराना।

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य दिलाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। पंजीकरण के बाद दलहन-तिलहन की खरीद सुनिश्चित की जाएगी और टमाटर, आलू, प्याज जैसी फसलों के लिए परिवहन व्यय भी सरकार वहन करेगी।

चौहान ने ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ की जानकारी देते हुए कहा कि इस अभियान के तहत वैज्ञानिकों की 2,170 टीमों ने किसानों से सीधा संवाद किया और शोध को खेत तक पहुंचाने का प्रयास किया गया। अभियान के दौरान सामने आई प्रमुख समस्याओं में घटिया बीज और कीटनाशकों का मुद्दा प्रमुख रहा, जिस पर सरकार अब सख्त कार्रवाई करने जा रही है। इस दिशा में कानूनी प्रावधानों को और मजबूत किया जाएगा।

कृषि शोध व नीतियों को ज़मीनी हकीकत से जोड़ने की आवश्यकता पर बल देते हुए मंत्री ने कहा कि अब दिल्ली के कृषि भवन में बैठकर नीति नहीं बनेगी, बल्कि अधिकारी और वैज्ञानिकों को खेतों में जाकर किसानों से संवाद करना होगा। उन्होंने घोषणा की कि कृषि विज्ञान केंद्रों के वैज्ञानिक सप्ताह में तीन दिन खेतों में जाकर किसानों से मिलेंगे। स्वयं वे भी सप्ताह में दो दिन किसानों के बीच रहकर कृषि कार्यों की जानकारी लेंगे।

उन्होंने बताया कि 24 जून को कृषि विज्ञान केंद्रों, आईसीएआर और अन्य संस्थाओं के साथ वर्चुअल मंथन किया जाएगा। इसके साथ ही 26 जून को इंदौर में सोयाबीन उत्पादन पर और 27 जून को गुजरात में कपास पर विशेष बैठकें आयोजित की जाएंगी। गन्ने की खेती को लेकर भी उत्तर प्रदेश में एक विशेष बैठक की योजना है।

अपने संबोधन के अंत में चौहान ने कहा कि नाफेड, एफपीओ और अन्य सहकारी संस्थाएं अच्छा कार्य कर रही हैं, लेकिन भारत को विश्व का फूड बास्केट बनाने के लिए और प्रयास की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि छोटी जोत वाले किसानों के लिए एकीकृत फार्म मॉडल तैयार किए जा रहे हैं ताकि सीमित संसाधनों में भी उन्हें अधिक लाभ मिल सके।

“किसानों के मान, सम्मान और शान में कोई कमी नहीं आने दी जाएगी। हम सब मिलकर कृषि को विकसित करने में योगदान करें, यही मेरा सभी से आह्वान है,” शिवराज सिंह चौहान ने अपने भाषण के समापन पर कहा।

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