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लस्टनेस जनहित सहकारी समिति को बंद करने का आदेश

नई दिल्ली स्थित लस्टिनेस जनहित क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड को सेंट्रल रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव सोसाइटीज रवींद्र कुमार अग्रवाल ने नियामकीय अनुपालनों में गंभीर चूक और जमाकर्ताओं की शिकायतों के आधार पर बंद करने का आदेश जारी किया है।

यह सोसाइटी मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज (MSCS) अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत थी।

बता दें कि इस कार्रवाई की शुरुआत मध्य प्रदेश के निवासी सत्येन्द्र चतुर्वेदी की ओर से दर्ज एक शिकायत के बाद हुई। इसके आधार पर केंद्रीय रजिस्ट्रार ने दिल्ली रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव सोसाइटीज को धारा 108 के अंतर्गत निरीक्षण का निर्देश दिया, लेकिन सोसाइटी ने इस आदेश की अनदेखी की।

मामला मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय तक पहुंचा, जहां तीन अलग-अलग रिट याचिकाओं की सुनवाई के बाद कोर्ट ने केंद्रीय रजिस्ट्रार को जमाकर्ताओं की शिकायतों पर कार्रवाई करने का निर्देश दिया। रजिस्ट्रार ने 11 फरवरी 2025 को औपचारिक आदेश जारी किए, लेकिन ये आदेश भी बिना वितरित हुए वापस लौट आए।

इसके पश्चात 10 मार्च 2025 को अंतिम नोटिस जारी किया गया, जिस पर कोई आपत्ति प्राप्त नहीं हुई। परिणामस्वरूप, एमएससीएस अधिनियम की धारा 86 के तहत सोसाइटी को औपचारिक रूप से बंद करने का आदेश दिया गया। साथ ही, दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के उपायुक्त/जिलाधिकारी को धारा 89(1) के तहत परिसमापक नियुक्त किया गया है, जिन्हें परिसमापन की त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं।

यह मामला उन कई बढ़ते मामलों में से एक है जिनमें मल्टी-स्टेट क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटियों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। हाल ही में उत्तर प्रदेश की लोनी अर्बन मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी, राजस्थान की वागर क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी, अमरदीप क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी, जोधपुर की वेलकम इंडिया क्रेडिट कोऑपरेटिव सोसाइटी, और महाराष्ट्र की ड्रायराराधा मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी को भी बंद करने के आदेश दिए जा चुके हैं।

इन सभी संस्थाओं में समान खामियाँ पाई गईं — जैसे कि कार्यालयों का गैर-कार्यात्मक होना, निर्धारित रिटर्न का जमा न करना, अनधिकृत विस्तार और जमाकर्ताओं को समय पर भुगतान न करना।

इन बढ़ते मामलों ने सहकारी क्षेत्र में नियामकीय निगरानी की मजबूती और जनता के धन की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं उत्पन्न कर दी हैं।

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