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दीर्घकालिक सहकारी ऋण संरचना की वित्तीय हालत खराब, एनपीए में बढ़ोतरी

वित्त वर्ष 2023-24 में राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक तथा प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की लाभप्रदता में भारी गिरावट दर्ज की गई। इसी के साथ बैंकों के घाटे में काफी वृद्धि हुई है और परिसंपत्ति गुणवत्ता पर गंभीर दबाव बना रहा।

देश के 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में फैले ये बैंक तीन ढाँचों, एकात्मक, संघीय और मिश्रित मॉडल, पर कार्य करते हैं।

राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक ने 2022-23 में 408 करोड़ रुपये का शुद्ध लाभ कमाया था, वहीं 2023-24 में इन बैंकों को 259 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ। वहीं, प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक भी लाभ से नुकसान में चले गए और पिछले वर्ष के 301 करोड़ रुपये के लाभ की तुलना में इस बार 137 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा दर्ज किया।

उक्त वित्त वर्ष में घाटा झेलने वाले बैंकों की संख्या बढ़ गई है। राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक 3 से बढ़कर 4 हो गए, जबकि प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक 255 से बढ़कर 263 तक पहुँच गए। इन बैंकों का सकल एनपीए भी काफी चिंताजनक है – राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों का 38.3% और प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों का 38.6% रहा।

बैलेंस शीट के अनुसार, राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों का उधार 12,520 करोड़ रुपये और प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों का उधार 16,840 करोड़ रुपये रहा। वहीं, ऋण बकाया क्रमशः 21,048 करोड़ रुपये और 15,922 करोड़ रुपये दर्ज हुआ। कुल परिसंपत्तियों में भी मामूली वृद्धि ही दिखी – राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों की 28,851 करोड़ रुपये और प्राथमिक सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों की 33,324 करोड़ रुपये रही।

विशेषज्ञों का कहना है कि इन बैंकों की संरचनात्मक सीमाएँ इन्हें और अधिक असुरक्षित बना रही हैं। चूँकि ये बैंक बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के अंतर्गत नहीं आते, इसलिए ये गैर-सदस्यों से माँग जमा नहीं जुटा सकते। इसके अलावा, इनकी जमा राशि जमा बीमा एवं ऋण गारंटी योजना के अंतर्गत भी कवर नहीं होती।

लगातार बढ़ते घाटे और ऊँचे एनपीए से यह स्पष्ट है कि दीर्घकालीन सहकारी ऋण क्षेत्र में तत्काल सुधार, मजबूत वसूली तंत्र और बेहतर सुशासन की सख्त आवश्यकता है।

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