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कोऑप बैंकों में निदेशक कार्यकाल पर बहस: राज्य और केंद्र के बीच नियंत्रण की लड़ाई

कर्नाटक स्थित सुको सौहार्द सहकारी बैंक के अध्यक्ष मोहित मास्की ने कर्नाटक सरकार के सहकारिता विभाग के सचिव को पत्र लिखकर बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। यह संशोधन सहकारी बैंकों के निदेशकों के कार्यकाल को अधिकतम दस लगातार वर्षों तक सीमित करता है।

मास्की ने अपने पत्र में इस संशोधन को “संवैधानिक अधिकारों पर अवैध हस्तक्षेप” करार दिया है। उन्होंने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की धारा 32 के तहत सहकारी संस्थाओं पर राज्य का पूर्ण विधायी अधिकार है और केंद्र सरकार इस पर अप्रत्यक्ष रूप से कानून नहीं बना सकती।

मास्की ने सुप्रीम कोर्ट के जुलाई 2021 के ऐतिहासिक फैसले का हवाला देते हुए बताया कि सहकारी संस्थाओं का गठन, संचालन और समाप्ति केवल राज्य विधानसभाओं के अधिकार क्षेत्र में आता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि केंद्र सरकार द्वारा बैंकिंग रेगुलेशन अधिनियम के माध्यम से लाए गए इस संशोधन का मूल उद्देश्य सहकारी बैंकों के गवर्नेंस और आंतरिक प्रबंधन में हस्तक्षेप करना है, जो कि कर्नाटक सहकारी संस्थाएँ अधिनियम, 1959 और कर्नाटक सौहार्द सहकारी अधिनियम, 1997 के अंतर्गत सीधे राज्य के अधिकार क्षेत्र में आता है।

मास्की ने यह भी कहा कि राज्य के सहकारी ढांचे के तहत प्रत्येक संस्था की जनरल बॉडी को बोर्ड चुनने और संचालन मानदंड तय करने का अंतिम अधिकार है। केंद्र का यह संशोधन इन प्रावधानों को कमजोर करता है और सदस्यों के लोकतांत्रिक नियंत्रण को प्रभावित करता है।

पत्र में मास्की ने कर्नाटक सरकार से आग्रह किया है कि वह तुरंत कदम उठाकर राज्य के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करे।

उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार केंद्र से इस संशोधन को वापस लेने का अनुरोध करे, संविधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए उचित न्यायिक मंच पर कदम उठाए और तब तक सहकारी बैंकों को राज्य कानूनों के तहत कार्यकाल मानदंडों का पालन करने के निर्देश जारी करे।

अपने पत्र के अंत में मास्की ने आश्वस्त किया कि कर्नाटक सरकार सहकारी स्वायत्तता और संविधान में निहित संघीय संतुलन की रक्षा के लिए तुरंत कदम उठाएगी।

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