
हिमाचल प्रदेश राज्य सहकारी बैंक द्वारा अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 के उपलक्ष्य में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सहकारी सम्मेलन को संबोधित करते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने सहकारी बैंकों की महत्ता पर जोर दिया।
उन्होंने कहा कि आकार में छोटे होने के बावजूद सहकारी बैंक औपचारिक बैंकिंग व्यवस्था से समाज के सबसे निचले तबके को जोड़ने में सेतु का काम कर रहे हैं। “जहां कमर्शियल बैंक पहुंचने में कठिनाई महसूस करते हैं, वहां ग्रामीण व शहरी सहकारी बैंक मौजूद रहते हैं और गरीब तबके तक सेवाएं पहुंचाते हैं,” उन्होंने कहा।
मल्होत्रा ने बताया कि सहकारी बैंकों के कर्ज का आकार लगभग 12 लाख करोड़ रुपये है, जो कुल बैंकिंग प्रणाली का करीब 6–6.5% है। पिछले पाँच वर्षों में इस क्षेत्र ने ऋण वितरण में 7.5% सीएजीआर और ग्रामीण कृषि वित्त में 10% की वृद्धि दर्ज की है। लाभप्रदता भी बढ़ी है और अब इनका शुद्ध लाभ 10,000 करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गया है, जबकि सकल एनपीए 2021 में 10% से घटकर 7% पर आ गया है।
हालांकि उन्होंने शासन, मानव संसाधन विकास, तकनीक, पूंजी जुटाने और आंतरिक ऑडिट जैसे क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा, “लाभ कमाना महत्वपूर्ण है, लेकिन मज़बूत गवर्नेंस के बिना कोई संस्था टिक नहीं सकती।”
गवर्नर ने डिजिटल बैंकिंग, कुशल प्रबंधकीय नेतृत्व और पारदर्शिता को भविष्य की कुंजी बताते हुए सहकारी बैंकों से आरबीआई, नाबार्ड और विधायी नियमों का सख्ती से पालन करने का आह्वान किया।
पूंजी जुटाने में सहकारी ढांचे की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए उन्होंने भरोसा दिलाया कि आरबीआई शहरी सहकारी बैंकों के लिए पायलट सुधार ला रहा है, जिसे आगे ग्रामीण सहकारी बैंकों तक बढ़ाया जाएगा।
समापन में उन्होंने कहा कि आरबीआई सहकारी बैंकों को कमर्शियल बैंकों के बराबर दर्जा देने और पुराने प्रतिबंध हटाने की दिशा में काम कर रहा है।
“हमारे लिए सहकारी बैंक उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने कमर्शियल बैंक। इनका भविष्य मज़बूत गवर्नेंस, नवाचार और जनसेवा में निहित है”, उन्होंने कहा।