
नेशनल अर्बन को-ऑपरेटिव फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनयूसीएफडीसी) के प्रतिनिधियों ने हाल ही में महाराष्ट्र के प्रमुख अर्बन कोऑपरेटिव बैंकों के प्रतिनिधियों के साथ वन-टू-वन बैठकें कीं, जिनमें उन्होंने संस्था के उद्देश्य और योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया।
हाल ही में सम्पन्न नेफकॉब की एजीएम में एनयूसीएफडीसी के चेयरमैन ज्योतिन्द्र मेहता ने जानकारी दी कि संस्था 15 सितंबर तक 300 करोड़ रुपये का लक्ष्य हासिल करने के करीब है। उन्होंने कहा, “हम अब तक 278 करोड़ रुपये जुटा चुके हैं और शेष 22 करोड़ रुपये आने वाले दिनों में प्राप्त कर लिए जाएंगे।”
बैठकों में एनयूसीएफडीसी के प्रतिनिधियों ने बैंकों के चेयरमैन, वाइस-चेयरमैन, निदेशकों और सीईओ से सीधे संवाद किया। चर्चाओं में डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन, बेहतर गवर्नेंस और सतत विकास के लिए फंड व नॉन-फंड आधारित अवसरों पर विशेष जोर दिया गया।
कई बैंकों ने एनयूसीएफडीसी की सेवाओं में गहरी रुचि दिखाई और वित्तीय सहायता, क्षमता निर्माण तथा परामर्श सेवाओं का लाभ लेने के लिए अपने बोर्ड में प्रस्ताव रखने की सहमति जताई।
एनयूसीएफडीसी ने नासिक मर्चेंट्स को-ऑपरेटिव बैंक (नासिक), अहमदनगर मर्चेंट्स को-ऑपरेटिव बैंक और अहमदनगर जिला प्राथमिक शिक्षक सहकारी बैंक (अहमदनगर), शिक्षक सहकारी बैंक (नागपुर), चिकली अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक (बुलढाणा) और राजारामबापू सहकारी बैंक (सांगली) जैसे टियर-3 बैंकों के साथ चर्चा की।
मुंबई से ग्रेटर बॉम्बे को-ऑपरेटिव बैंक और मॉडल को-ऑपरेटिव बैंक (टियर-3), तथा कोकण मर्केंटाइल बैंक, केएनएस बैंक, डेक्कन मर्चेंट्स बैंक और मोगवीरा बैंक (टियर-2) के प्रतिनिधि भी जुड़े। पुणे क्लस्टर से महेश सहकारी बैंक, पावना सहकारी बैंक, साधना सहकारी बैंक, संत सोपानकाका सहकारी बैंक (टियर-2), और भारती सहकारी बैंक, बारामती को-ऑपरेटिव बैंक व राजगुरूनगर सहकारी बैंक (टियर-3) ने भाग लिया।
अन्य प्रमुख प्रतिभागियों में प्रवरा सहकारी बैंक (अहमदनगर), वैद्यनाथ अर्बन को-ऑपरेटिव बैंक (बीड), नांदेड़ मर्चेंट्स बैंक (नांदेड़), पिंपरी चिंचवड़ सहकारी बैंक (पुणे) और धुले-नंदुरबार जिला सरकारी नोकरांची सहकारी बैंक शामिल रहे। टियर-1 स्तर से शिरपुर मर्चेंट्स बैंक और धुले विकास सहकारी बैंक ने भी भाग लिया।
महाराष्ट्र देश के सहकारी बैंकिंग क्षेत्र का एक अहम केंद्र है। ऐसे में एनयूसीएफडीसी की यह पहल राज्य की बैंकिंग प्रणाली को आधुनिक बनाने में मील का पत्थर साबित हो सकती है और अन्य राज्यों के लिए भी एक मॉडल बन सकती है।