
ग्रामीण सहकारी ऋण संरचना को आधुनिक बनाने के लिए शुरू की गई महत्वाकांक्षी पैक्स कम्प्यूटरीकरण परियोजना के तहत 30 जून 2025 तक देशभर की 73,492 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को कम्प्यूटरीकरण की स्वीकृति मिल चुकी है। सहकारिता मंत्रालय की इस पहल का उद्देश्य जमीनी स्तर की संस्थाओं में पारदर्शिता, दक्षता और सुलभता लाना है।
महाराष्ट्र इस सूची में सबसे आगे है, जहाँ 12,000 पैक्स को स्वीकृति मिली है। इसके बाद राजस्थान (7,468), गुजरात (5,754), उत्तर प्रदेश (5,686) और कर्नाटक (5,682) प्रमुख राज्यों में शामिल हैं। मध्य प्रदेश (5,188), तमिलनाडु (4,532) और बिहार (4,495) भी मजबूत भागीदारी दिखा रहे हैं। वहीं पश्चिम बंगाल (4,167) और पंजाब (3,482) शीर्ष दस में जगह बनाए हुए हैं।
ओडिशा हाल ही में इस परियोजना से जुड़ा है और यहाँ 2,711 पैक्स को स्वीकृति मिली है। आंध्र प्रदेश (2,037), छत्तीसगढ़ (2,028), झारखंड (2,797) और हिमाचल प्रदेश (1,789) में भी पर्याप्त स्वीकृतियाँ दी गई हैं।
हालाँकि, छोटे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इस मामले में काफी पीछे हैं। गोवा (58), अंडमान व निकोबार द्वीपसमूह (46), पुदुच्चेरी (45), मिजोरम (49), अरुणाचल प्रदेश (14), लद्दाख (10) और दादरा एवं नगर हवेली तथा दमन एवं दीव (4) की स्थिति न्यूनतम है। यह आँकड़े उनके सीमित सहकारी ढाँचे और भौगोलिक चुनौतियों को दर्शाते हैं।
परियोजना के अंतर्गत पैक्स में ईआरपी-आधारित सॉफ्टवेयर लगाया जाएगा, जिससे रीयल-टाइम अकाउंटिंग, ऋण वितरण और जिला व राज्य सहकारी बैंकों से एकीकरण संभव होगा। पैक्स अधिकारियों को प्रशिक्षण भी दिया जाएगा ताकि बदलाव सुगमता से लागू हो सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े ग्रामीण अर्थतंत्र वाले राज्य जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश को निकट भविष्य में सबसे अधिक लाभ होगा, वहीं छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को विशेष सहयोग की आवश्यकता होगी ताकि सहकारी डिजिटलीकरण की इस यात्रा में कोई भी क्षेत्र पीछे न रह जाए।