
अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 के उपलक्ष्य में देशभर के सहकारी क्षेत्र को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम के रूप में केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में नई दिल्ली में “मंथन बैठक” का आयोजन हुआ।
यह बैठक भारत सरकार के सहकारिता मंत्रालय द्वारा आयोजित की गई, जिसमें देश के सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के सहकारिता मंत्री, अतिरिक्त मुख्य सचिव, प्रधान सचिव एवं सहकारिता विभागों के सचिवों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
बैठक का मुख्य उद्देश्य भारत में सहकारी आंदोलन को मजबूती देना, वर्तमान योजनाओं की समीक्षा करना, उपलब्धियों का आंकलन करना तथा राज्यों के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं एवं रणनीतियों के आदान-प्रदान हेतु एक प्रभावी मंच प्रदान करना था। बैठक के दौरान सहकारिता मंत्रालय की 60 से अधिक पहलों की समीक्षा की गई।
अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना भारत की प्राचीन सहकारी परंपरा को आधुनिक दृष्टिकोण के साथ पुनर्जीवित करने के लिए की गई थी। उन्होंने बताया कि 2014 से 2024 के कालखंड में मोदी सरकार ने करोड़ों गरीबों को घर, शौचालय, पीने का पानी, गैस सिलेंडर, अनाज और स्वास्थ्य सेवाएं जैसी मूलभूत सुविधाएं प्रदान की हैं।
उन्होंने कहा कि अब ये करोड़ों लोग आत्मनिर्भर बनने के लिए तैयार हैं, लेकिन उनके पास पूंजी का अभाव है। ऐसे में सहकारिता ही एकमात्र ऐसा माध्यम है, जो इनकी छोटी-छोटी पूंजी को जोड़कर उन्हें उद्यमशीलता की ओर अग्रसर कर सकती है। उन्होंने कहा कि देश की 140 करोड़ आबादी के लिए सकल घरेलू उत्पाद, सकल राज्य घरेलू उत्पाद और रोजगार सृजन आवश्यक हैं और इसके लिए सहकारिता सबसे कारगर माध्यम है।
श्री शाह ने कहा कि सहकारी आंदोलन के पिछड़ने के तीन प्रमुख कारण रहे हैं—समय के साथ कानूनों का संशोधन न होना, सहकारिता में नवाचार का अभाव, और भाई-भतीजावाद की संस्कृति। इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है, जो सहकारी संस्थाओं को समग्र प्रशिक्षण प्रदान करेगी। उन्होंने सभी राज्यों से अपील की कि वे अपनी सहकारी प्रशिक्षण संस्थाएं इस विश्वविद्यालय से जोड़ें।
बैठक में राष्ट्रीय सहकारी डाटा बेस की भी चर्चा हुई, जो यह सुनिश्चित करेगा कि देश का कोई भी गांव बिना सहकारी संस्था के न रहे। यह डाटाबेस राष्ट्रीय, राज्य, जिला और तहसील स्तर पर सहकारिता की पहुंच का विश्लेषण करने में मदद करेगा।
अन्य प्रमुख विषयों में देशभर में 2 लाख बहुउद्देश्यीय प्राथमिक कृषि ऋण समितियों की स्थापना की प्रगति, दुग्ध एवं मत्स्य सहकारी समितियों को बढ़ावा देना, और सहकारी अन्न भंडारण योजना का कार्यान्वयन शामिल था।
बैठक में तीन नवगठित बहु-राज्य सहकारी समितियों—राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड, राष्ट्रीय सहकारी ऑर्गेनिक्स लिमिटेड, और भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड—की भूमिका पर भी चर्चा की गई। राज्यों को इन समितियों के साथ अधिक सहयोग और समन्वय बढ़ाने का सुझाव दिया गया।
श्वेत क्रांति 2.0 के तहत सतत और परिपथीय डेयरी अर्थव्यवस्था पर विचार हुआ, जबकि पैक्स और सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार कार्यालयों के कम्प्यूटरीकरण और राष्ट्रीय सहकारी डाटा बेस के कार्यान्वयन की समीक्षा भी की गई।
इसके अलावा, राज्य सहकारी बैंक और जिला केंद्रीय सहकारी बैंक को सशक्त बनाने के लिए साझा सेवा इकाई और शहरी सहकारी बैंकों के लिए अम्ब्रेला संगठन की स्थापना जैसे वित्तीय सुधारों पर विचार विमर्श किया गया।
बैठक के सफल आयोजन ने यह स्पष्ट कर दिया कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर सहकारी क्षेत्र को आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में एक मजबूत स्तंभ के रूप में विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के “सहकार से समृद्धि” के विज़न को साकार करने की दिशा में यह मंथन बैठक एक प्रेरक और निर्णायक पहल रही।