
बिहार की सहकारिता राजनीति में एक बड़ा सत्ता परिवर्तन देखने को मिला है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्य की शीर्ष विपणन सहकारी संस्था-बिस्कोमान की कमान अपने हाथों में ले ली है, जहां पिछले 15 वर्षों से अधिक समय तक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) का वर्चस्व कायम था।
पिछले सप्ताह शुक्रवार को हुए चुनाव में विशाल सिंह अध्यक्ष और महेश राय उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए। हालांकि परिणामों की आधिकारिक घोषणा अब तक नहीं हुई है, लेकिन विश्वसनीय सूत्रों से यह जानकारी प्राप्त हुई है।
इस चुनाव में विशाल सिंह ने 12 वोट हासिल किए, जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी और राजद के वरिष्ठ नेता एवं निवर्तमान अध्यक्ष सुनील कुमार सिंह की पत्नी बंदना सिंह को 7 वोट मिले। एक वोट अमान्य घोषित किया गया।
चुनाव जीतने के बाद, विशाल सिंह और उनकी टीम ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर आभार जताया। साथ ही उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, मंत्री विजय कुमार चौधरी, प्रेम कुमार, मंगल पांडे, अशोक चौधरी और राजू कुमार सिंह का भी धन्यवाद किया।
इस अवसर पर विशाल सिंह ने कहा, “बिस्कोमान के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद का चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुआ। आधिकारिक घोषणा उचित समय पर की जाएगी।”
उन्होंने आगे कहा, “मैं उन सभी निदेशक मंडल के सदस्यों का दिल से धन्यवाद करता हूं जिन्होंने सहकारी आंदोलन को मजबूत करने की भावना से मतदान किया। हम माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी, केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह जी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी की दृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं।”
उपाध्यक्ष पद के चुनाव में गोपालगंज से भाजपा समर्थित उम्मीदवार महेश राय ने 11 वोट हासिल कर जीत दर्ज की। उन्होंने राजद विधायक और सुनील कुमार सिंह के करीबी सहयोगी विनय कुमार को हराया, जिन्हें 8 वोट मिले। यहां भी एक वोट अमान्य घोषित किया गया।
पाठकों को याद होगा कि पिछले सप्ताह गुरुवार शाम झारखंड हाईकोर्ट (रांची) द्वारा पारित एक अंतरिम आदेश ने इस चुनाव प्रक्रिया पर कानूनी संकट उत्पन्न कर दिया था। झारखंड सरकार द्वारा दायर रिट याचिका में सहकारी चुनाव प्राधिकरण की दिनांक 03.04.2025 और 05.05.2025 की अधिसूचनाओं और पत्रों को चुनौती दी गई है, जिनके आधार पर बिस्कोमान चुनाव 8 और 9 मई 2025 को निर्धारित किए गए थे।
बताया जाता है कि यह याचिका कथित तौर पर सुनील कुमार सिंह के इशारे पर दाखिल की गई है, जिससे पूरी प्रक्रिया अब न्यायिक जांच के दायरे में आ गई है।
हालांकि, भाजपा की यह चुनावी जीत बिहार के सहकारी क्षेत्र में एक बड़ी राजनीतिक और रणनीतिक सफलता के रूप में देखी जा रही है। अब सबकी निगाहें झारखंड हाईकोर्ट के अंतिम फैसले पर टिकी हैं। यदि यह जीत वैध ठहराई जाती है, तो यह बदलाव बिहार के सहकारी तंत्र की दशकों पुरानी राजनीतिक संरचना को पूरी तरह से बदल सकता है।