विविध

नाबार्ड बनाम सहकारी बैंक: बहस जारी

भारतीय सहकारिता को राजीव पाडिया से एक मेल प्राप्त हुआ है कि नाबार्ड की भूमिका की सहकारी बैंकों की तुलना में रचनात्मक नहीं है। बहस बौद्धिक प्रक्रिया की आत्मा है इसी कारण हम नीचे उनके विचार प्रस्तुत कर रहे है।

कुछ अंशः

हैलो सर,

नाबार्ड और आरबीआई दोनों सीसीआई के इस हालत के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने हमेशा राज्य और जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों पर प्रतिबंधात्मक नीतियाँ डालने का काम किया है।

वे इन बैंकों को कृत्रिम रूप से तैयार की गई तंग दायरे से निकलने नही देते है। 

जबकि वित्तीय अनुशासन और आर्थिक  मामले में उनके साथ वाणिज्यिक बैंकों जैसा व्यवहार किया जाता है, लेकिन जब वे लाभदायक व्यवसाय करने लगते है तो उन्हें अपनी हीनता की याद दिलाई जाती है।

इस परिदृश्य में व्यापक फसल बीमा योजना(सीसीआई) केवल तभी जीवित रह सकती है अगर उन्हें उद्यम और अन्य क्षेत्रों में व्यापार करने की अनुमति दी जाती है ताकि वे सिर्फ  कृषि या पैक्स में ही फँसे ना रहे।  

भारतीय रिजर्व बैंक और नाबार्ड को अभी भी लगता है कि राज्य और जिला सहकारी बैंक केवल पैक्स के लिए होती हैं।

हमने संयुक्त राज्य अमेरिका का दौरा किया है और क्रेडिट यूनियनों के काम का अध्ययन किया। यह देखा गया की वहाँ भी सफर रहे है जहाँ बड़े बैंक संयुक्त राज्य अमेरिका में   फैल कर जाते है।

राज्य और जिला सहकारी बैंकों के लिए रिजर्व बैंक और नाबार्ड के पास कुछ सकारात्मक नीतियों का होना आवश्यक है।

राजीव पाडिया

Tags
Show More

Related Articles

Back to top button
Close