एनसीयूआई

NCUI चुनाव की जांच के लिए मध्यस्थ नियुक्त

भारतीय राष्ट्रीय सहकारिता संघ, सहकारिता का शीर्ष निकाय, अचानक सुर्खियों में आ गया है.  कहा जाता है कि मार्च 2009 में इसके चुनाव में सहकारिता माफिया द्वारा धाँधली की गई थी. मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए केन्द्रीय पंजीयक ने मामले की जांच करने के लिए मध्यस्थ नियुक्त किया है.

भारतीयसहकारिता.कॉंम से बातचीत करते हुए प्रसिद्ध सहकारिताकर्मी तपेश्वर सिंह के बेटे और स्वर्गीय अजीत सिंह के भाई श्री रणजीत सिंह  ने कहा कि अधिशासी परिषद के चुनाव के लिए चुनाव क्षेत्र बनाने में कुछ उम्मीदवारों के पक्ष में हेरफेर किया गया था.

बहुराज्यीय समितियों का एक निर्वाचन क्षेत्र, आवास सहकारी समितियों का दूसरा और पर्यटन सहकारिता का तीसरा क्षेत्र बनता है. लेकिन कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों ने निर्वाचन क्षेत्रों मे कुछ ऐसा घाल-मेल कर दिया है कि एक क्षेत्र में दूसरे के सदस्यों का घुसपैठ संभव हो गया है.   श्री रंजीत सिंह का दावा है कि ऐसा कुछ उम्मीदवारों के जीतने के अवसर में वृद्धि करने के लिए निर्वाचन अधिकारी की मिलीभगत से किया गया था. श्री सिंह का नामांकन इस प्रकार अवैध हेरफेर के कारण अस्वीकार कर दिया था.

अदालत जाने से पहले श्री सिंह ने केन्द्रीय रजिस्ट्रार के पास एक याचिका दाखिल की है जिसने  श्री संजीव गुप्ता को मामले की जांच के लिए मध्यस्थ के रूप में नियुक्त किया है.  केन्द्रीय रजिस्ट्रार से संपर्क करने का भारतीयसहकारिता.कॉम का प्रयास सफल नहीं हो सका.

पाठक जानते होंगे कि भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (NCUI) जो भारतीय सहकारिता आंदोलन का शीर्ष संगठन है, सन् 1929 से कार्यरत है. भारतीय सहकारिता संघ के रूप में पुनः संगठित होने के बाद १९५४ में इसका नामकरण अखिल भारतीय सहकारी संघ के रूप किया गया और फिर 1961 में भारती राष्ट्रीय सहकारी संघ(NCUI) नाम पडा.

इसका उद्देश्य भारत में सहकारिता आन्दोलन को बढ़ावा देना और विकास करना है.  यह लोगों को उनके सहकारीता क्षेत्र के निर्माण और प्रसार के प्रयाशों में शिक्षित, निदेशित और सहयता करना चाहता है तथा सहकारिता के सिध्दांतों के अनुरूप विचारों का प्रतिपादन करने में मदद देना चाहता है.

इस पृष्ठभूमि में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि एक निकाय जिसका उद्देश्य सहकारिता आन्दोलन को मजबूत करना है, स्वयं ही विवाद में फंस जाता है. एनसीसीएफ के चुनाव में भारतीयसहकारिता.कॉम ने उजागर किया है कि कैसे निर्वाचन अधिकारी पूरी निर्वाचन प्रक्रिया का मजाक बना सकता है.  रामहत नाम का एक उम्मीदवार नामांकन नहीं भर सका क्योंकि वहाँ उसके कागजात प्राप्त करने के लिए कोई नहीं था जबकि कुछ चुने हुए लोगों के कागजात एक अलग स्थान से लिए जा रहे थे.

यहां तक कि निर्वाचन अधिकारी की पसन्द एक मुद्दा है जिसका यदि ध्यान नहीं रखा गया तो सारा सहकारिता आन्दोलन ध्वस्त हो जाएगा.  क्या सरकार इस पर ध्यान देगी?

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