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कोर्ट में एनसीसीटी मामला: कृषि मंत्रालय ने पुनः मांगा समय

कृषि मंत्रालय ने एनसीयूआई से एनसीसीटी को अलग करने के मामले में एनसीयूआई के उत्तरों का अध्ययन करने के लिए एक बार फिर समय मांगा है। बता दें कि मामला सोमवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए आया था।

माननीय अदालत ने सुनवाई के लिए आगली तारीख आगस्त के लिए निर्धारित की है लेकिन सरकार की तरफ से प्रतिनिधि एडिशनल सॉलिसिटर जनरल को अगली सुनवाई में तैयार होकर आने को कहा गया है।

एनसीयूआई सूत्रों का कहना है कि यह केवल मंत्रालय का मामले को विलंब करने की साजिश है क्योंकि सरकार इस मुद्दे पर पूरी तरह से विफल दिखाई दे रही है। “इस मामले में एनसीयूआई का कानूनी पक्ष काफी मजबूत है”, उन्होंने कहा।

नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हर संभव कोशिश के बाद भी मंत्रालय एक या दो बार से ज्यादा की देरी नहीं कर सकता है और फैसला हमारे पक्ष में ही आने वाला है।”

8 मई को पिछली सुनवाई में भी मंत्रालय ने इसी तरह एनसीयूआई द्वारा दायर जवाब का अध्ययन करने के लिए समय मांगा था।

इससे पहले, एनसीसीटी ने अदालत के निर्देश पर एक हलफनामा दायर किया था जिसमें तर्क दिया गया था कि कैसे एनसीयूआई को एनसीसीटी से अलग किया जाना उचित है। ओम प्रकाश के नेतृत्व में अधिवक्ताओं ने एनसीसीटी के हलफनामे में निहित बिंदुओं के खिलाफ तर्क दिया था।

गत अप्रैल माह में शीर्ष निकाय एनसीयूआई को एक बड़ी जीत हासिल हुई थी जब दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकार को संगठन में संरचनात्मक परिवर्तन करने के लिए कोई भी कदम उठाने से खुद को संयमित रखने के लिए कहा था।

उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट है कि उत्तरदाताओं (सरकार) के पास याचिकाकर्ताओं (एनसीयूआई) के संगठन के एक हिस्से (एनसीसीटी) को एक अलग सोसाइटी के रूप में अलग करने का कोई अधिकार नहीं है।

अदालत ने केंद्र सरकार को कानून के प्रावधानों को सामने रखने को कहा था, जिसके तहत आदेश पारित किये गये हैं जिसे चुनौती दी गई है। केंद्र सरकार ने इस आशय पर एक हलफनामा दायर किया, जिसे एनसीयूआई के वकीलों द्वारा बिन्दुवार खंडित किया गया था।

उल्लेखनीय है कि एनसीयूआई को कृषि मंत्रालय से एक पत्र मिला था, जिसका शीर्षक “नेशनल काउंसिल ऑफ़ कोऑपरेटिव ट्रेनिंग (एनसीसीटी) को एनसीयूआई से अलग कर, एक स्वतंत्र केंद्रीय और व्यावसायिक निकाय के रूप में स्थापना करना” था।

शीर्ष निकाय ने मंत्रालय के आदेश को अदालत में चुनौती दी।

 

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