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मराठे बीमा क्षेत्र में सहकारिता की भूमिका के पक्षधर

सहकार भारती के सरंक्षक सतीश मराठे का मानना है कि सहकारी समितियां बीमा, बिजली और अन्य संबंधित क्षेत्रों में बड़ी भूमिका निभा सकती है। गौरतलब है कि मराठे इन दिनों सभी छोटे-बड़े सहकारी समारोह में सक्रिय दिखते हैं।

हाल ही में दिल्ली में एनसीडीसी मुख्यालय में भारतीय सहकारिता की टीम से बातचीत में, मराठे ने अपने तर्क को समझाने के लिए विदेश का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि “जापान, लैटिन अमेरिका और कई अन्य देशों में सहकारी समितियां बीमा क्षेत्र में अहम भूमिका निभा रही हैं”।

इससे सदस्यों और उपभोक्ताओं दोनों के फायदों को समझाते हुए मराठे ने कहा कि “जरा बिजली वितरण का उदाहरण लेते हैं, अगर सहकारी समितियां इस क्षेत्र को टेकओवर करती है तो बिजली दरों में गिरावट आएगी और बिजली चोरी की घटनाएं कम हो जाएंगी”।

मराठे ने माना कि सहकारी समितियों के लिए धन जुटाना एक गंभीर समस्या है। सहकार भारती ने सरकारी एजेंसियों के सामने कई बार इस मुद्दा को उठाया है, मराठे ने दावा किया।

इस बीच, मराठे का मानना है कि सहकारी समितियों को अपने कामकाज में पेशेवर ढंग को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ”इससे बहुत बड़ा फर्क पड़ता है कि आप उद्यमों को कैसे चलाते हैं”। शिक्षित और प्रशिक्षित सदस्य बोर्ड की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं, और पेशेवर प्रबंधन व्यवसाय को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है, मराठे ने कहा।

इससे पहले, सहकार भारती संरक्षक ने इफको द्वारा आयोजित नेहरू मेमोरियल व्याख्यान के अवसर पर इफको के मंच से देश में “कॉपरेटिव पब्लिक पार्टनरशिप” शुरू करने का विचार रखा था। मराठे ने कहा कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल (पीपीपी) ने सेवा क्षेत्र में इच्छानुसार काम नहीं किया है और अब वक्त है कि सरकार को सहकारिता को मौका देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हमने पानी, बिजली और परिवहन जैसे क्षेत्रों में पीपीपी मॉडल को विफल पाया है। आइए हम “कॉपरेटिव पब्लिक पार्टनरशिप” जैसा नया ब्लू प्रिंट तैयार करें।

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