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सहकारी खेती: एनसीडीसी उप-प्रबंध निदेशक एक प्रयोगकर्ता

डी.एन.ठाकुर, एनसीडीसी के उप-प्रबंध निदेशक है, लेकिन यह इनका सम्पूर्ण परिचय नहीं है। ठाकुर सहकारिता जगत और आर्गेनिक फार्मिंग के दिग्गज माने जाते हैं और इसकी मिसाल इन्होंने अपने गांव में ही सहकारी खेती अपनाकर दी है।

उन्होंने कहा कि अकेले पैसे के बल पर किसानों के जीवन को नहीं बदला जा सकता है। 1947 के बाद से किसानों के लिए आवंटित बजट का उदाहरण देते हुए ठाकुर ने कहा कि अगर पैसे के बल पर तरक्की होती तो कृषि क्षेत्र की तस्वीर कुछ और ही होती।

उन्होंने किसानों के विकास और समृद्धि के लिए सहकारी खेती की वकालत की। इस विचार को ठाकुर ने अपने गांव लडारी में अपनाया जो बिहार के दरभंगा शहर से 15 किलोमीटर दूर स्थित है। उन्होंने अपने सह-ग्रामीणों को अपनी भूमि को सहकारी तरीके से व्यवसायित करने के लिए प्रेरित किया और गांव के उन लोगों से जो रिटायर्ड होने के बाद गांव में रहते हैं उनसे आग्रह किया कि वे इस प्रकार से 1000 एकड़ एकत्रित जमीन में खेती की देखरेख करें।

“बड़ा रकवा होने की वजह से बाजार से खेती के उपकरणों को किराए पर लेना आसान हो गया और खेती का सारा काम उन शिक्षित लोगों के हाथों में चला गया, जिन्हें कोई ठग नहीं सकता। ठाकुर ने इस अद्भुत अवधारणा के बारे में खुलासा करते हुए कहा कि, “इस तरह गांव में रहने वाले लोग नीरस और कठीन काम से आजाद हो गए हैं और वे अपनी आय को बढ़ाने में दूसरे उपाय पर ध्यान केंद्रित करने लगे”।

जिन ग्रामीणों के पास कम भूमि है अपने हिस्से के लाभ के अलावा भी सामूहिक जमीन में योगदान देकर प्रतिदिन कमा सकते हैं। जबकि जो लोग दिल्ली या मंबुई में रहते हैं वे भी अपनी खेती से लाभ के बारे में आश्वस्त हो सकते हैं, ठाकुर ने कहा। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि ठाकुर को सहकारी गलियारों में एक बुद्धिमान कृषि सलाहकार के रूप में जाना जाता है।

“हम गोदाम और कोल्ड स्टोरेज का निर्माण करने की योजना बना रहे हैं ताकि समय आने पर हमें उत्पाद के लिए अच्छे दाम मिल सकें। बड़ा रकवा होने की वजह से हम स्थानीय अधिकारियों जैसे बीडीओ या पैक्स के अधिकारियों से संपर्क साधने में अधिक प्रभावी हो सकते हैं”, उन्होंने कहा।

“अगर आपको सच्चाई बताऊं तो मैं इस तरह के मॉडल को पंचायत स्तर पर दोहराना चाहता हूं ताकि किसान अपनी आवाज उठा सके और बजाए सरकारी अधिकारी या बाजार प्रबंधक के वे अपने निर्णय खुद ले सके”, ठाकुर ने रेखांकित किया। “ ये सारा खेल स्केल का है और आपका औकात आपके खेती के क्षेत्रफल पर निर्भर करता है”, उन्होंने जोड़ा।

हाल के दिनों में ठाकुर ने एनसीडीसी की टीम के साथ-साथ एमडी संदीप नायक के साथ मिलकर सहकारी ऋण देने की प्रक्रिया को बहुत आसान कर दिया है। अपने कड़े ऋण मानदंडों के लिए जाने जानी वाली एनसीडीसी ने हाल के वर्षों में ऋण की शर्तों को सरल बनाकर अच्छा मुनाफा कमाया है।

“आखिर क्यों कोई हमसे ऋण ले, ठाकुर ने पूछा। ये सिर्फ हमारी सेवा-भाव और सकारात्मक रवैया के कारण ही संभव हो पाता है और लोग हमारे पास आते हैं। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि एनसीडीसी के ऋण देने में बढोतरी हुई है जो 2015 में 4 हजार करोड़ रुपये थी और अब 2018 में 24 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गई है।

ठाकुर ने कहा कि एनसीडीसी का ब्याज दर अन्य वाणिज्यिक उधारदाताओं की तुलना में कम नहीं है, लेकिन ग्राहकों के हितों को बढ़ाने के लिए हमारी तत्परता से कोई हाथ नहीं मिला सकता है। भारतीय सहकारिता को जानकारी मिली है कि राधा मोहन सिंह ने भी एनसीडीसी के ऋण संबंधित शर्तों को सरल बनाने में अपना समर्थन दिया था। “हम सहकारिता के काम को देखकर ही ऋण देते हैं तभी तो एनसीडीसी की वसूली दर 99 प्रतिशत से अधिक है”, ठाकुर ने बताया।

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