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विश्व पर्यावरण दिवस, एनसीयूआई अध्यक्ष का संदेश

चंद्रपाल सिंह यादव

वर्ष 1974 से हर वर्ष 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि समाज के सभी वर्गों द्वारा पर्यावरणीय मुद्दों व उनके समाधान संबन्धित किए जाने वाले प्रयासों पर सभी का ध्यान आकर्षित किया जाता है ।

यह दिन पर्यावरण के बारे में लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाले तत्वों जैसे हम जिस हवा में सांस लेते हैं, जो पानी हम पीते हैं और जो भोजन हम खाते हैं उसके बारे में जागरूकता फैलाने वाला है।

यह दिन सतत् विकास लक्ष्यों के पर्यावरण संबंधी आयाम को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन गया है।

इस वर्ष के विश्व पर्यावरण दिवस की विषयवस्तु ‘जैव विविधता’ है, जिसका अर्थ है, पृथ्वी पर जीवन की विविधता। आमतौर पर कहा जाता है कि दुनिया की अर्थव्यवस्था का 40 प्रतिशत से अधिक और गरीबों की 80 प्रतिशत जरूरतों की पूर्ति जैविक संसाधनों से होती है।

पृथ्वी पर जैव विविधता जितनी समृद्ध होती है, उसका सीधा असर चिकित्सा खोजों, आर्थिक विकास के साथ साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से पार पाने में मदद मिलती है। जैव विविधता के संरक्षण एवं सतत् विकास हेतु एक उपयुक्त रणनीति होना वर्तमान समय की आवश्यकता है।

कोविड-19 की वैश्विक त्रासदी ने इस तथ्य को रेखांकित किया है कि हमने जैव विविधता और मानव जीवन व उसके मूल्यों से जुड़ी प्रणाली को समाप्त कर दिया है। हालांकि, यह हमें प्रकृति के साथ अपने संबंधों को फिर से सुधारने और पर्यावरणीय रूप से अधिक जिम्मेदार दुनिया के पुनर्निर्माण का सुअवसर प्रदान करता है।

भारतीय सहकारी आंदोलन दुनिया का सबसे बड़ा सहकारी आंदोलन है जो जैव विविधता को बहाल करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हर वर्ष इस दिन, सहकारी संस्थाएं और उससे जुड़े सदस्य बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण का कार्य करते हैं।

मैं, भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ की ओर से सभी सहकारी बन्धुओं से आगे आने, सदस्यों को शिक्षित करने, राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए खुद को समर्पित करने और पर्यावरण के संरक्षण के लिए प्रेरित करने के लिए संभावित कदम उठाने का आग्रह करता हूँ।

विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर, मैं अपने साथी देशवासियों से अपील करता हूँ कि वे धरती मां का पोषण करें और सादा जीवन जीते हुए एवं सीमित चाह रखते हुए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करें।

जैव विविधता संरक्षण का मूल मंत्र यही है कि दूसरों को शिक्षित करने के लिए खुद को शिक्षित करें ।

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