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कटारे को मिला “9वां श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान”

उर्वरक क्षेत्र की प्रमुख संस्था इफको द्वारा वर्ष 2019 का ‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको साहित्य सम्मान’ वरिष्ठ कथाकार महेश कटारे को दिया गया। उन्हें यह सम्मान 31 जनवरी (शनिवार) को नई दिल्ली के एनसीयूआई ऑडिटोरियम में आयोजित एक समारोह में सुविख्यात साहित्यकार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने दिया।

इफको द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक,  साहित्य की दुनिया में लगातार सक्रिय रहने वाले कटारे की रचनाओं में समर शेष है, इतिकथा अथकथा, मुर्दा स्थगित, पहरुआ, छछिया भर छाछ, सात पान की हमेल, मेरी प्रिय कथाएं, गौरतलब कहानियाँ (कहानी); महासमर का साक्षी, अँधेरे युगान्त के, पचरंगी (नाटक); पहियों पर रात दिन, देस बिदेस दरवेश (यात्रावृत); कामिनी काय कांतारे, कालीधार, भर्तृहरि काया के वन में (उपन्यास); समय के साथ-साथ, नजर इधर-उधर (अन्य) प्रमुख हैं।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं सम्मान चयन समिति के अध्यक्ष डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने लेखक को सम्मानित करने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि कटारे का लेखन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। किसानों के जीवन को मुखरित करने का काम जो कटारे जी ने किया है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने कहा कि कटारे जी की कृतियों में प्रेमचंद और रेणु की छाप है। आपकी रचनाओं में संस्कृत की परंपरा के साथ देशज चिंतन का संश्लेष विलक्षण है।

कटारे जी का उपन्यास भर्तृहरि काया के वन में तत्कालीन कृषक जीवन, आदिवासी जीवन, वैदिक-अवैदिक संप्रदायों की साधनाओं का जीवंत दस्तावेज है।

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी की अध्यक्षता में गठित निर्णायक मंडल ने महेश कटारे का चयन खेती-किसानी वाले ग्रामीण यथार्थ पर केन्द्रित उनके व्यापक साहित्यिक अवदान को ध्यान में रखकर किया गया। निर्णायक मंडल के अन्य सदस्य श्री देवी प्रसाद त्रिपाठी, श्रीमती मृदुला गर्ग, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, प्रो. रविभूषण, श्री इब्बार रब्बी और डॉ. दिनेश कुमार शुक्ल थे।

प्रतिवर्ष दिया जाने वाला यह प्रतिष्ठित पुरस्कार किसी ऐसे रचनाकार को दिया जाता है जिसकी रचनाओं में ग्रामीण और कृषि जीवन से जुड़ी समस्याओं,आकांक्षाओं और संघर्षों को मुखरित किया गया हो। मूर्धन्य कथाशिल्पी श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में साल 2011 में शुरू किया गया यह सम्मान अब तक विद्यासागर नौटियाल, शेखर जोशी, संजीव, मिथिलेश्वर, अष्टभुजा शुक्ल, कमलाकान्त त्रिपाठी, रामदेव धुरंधर एवं रामधारी सिंह दिवाकर को दिया गया है।

सम्मानित साहित्यकार को एक प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति पत्र तथा ग्यारह लाख रुपये की राशि का चैक दिया जाता है।

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