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एनसीयूआई के उपनियम निर्वाचन को नहीं बल्कि चयन को बढ़ावा देते हैं : डबास

एनसीयूआई का चुनाव कानूनी पेंच में उलझ गया है। एनसीयूआई ने कुछ निर्वाचन क्षेत्रों को एक साथ जोड़ दियाजिसे नेशनल लेबर कोऑपरेटिव्स फेडरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के निदेशक अशोक डबास ने चुनौती दी है। डबास ने आरोप लगते हुये कहा कि सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था एनसीयूआई कमजोर वर्ग की सहकारी समितियों के प्रतिनिधित्व को कमजोर करना चाहती है।

“भारतीयसहकारिता” से बात करते हुए डबास ने कहा कि एनसीयूआई के कुछ नेता इस तरीके से निर्वाचन क्षेत्रों को तय करते हैंजो सहकरी आंदोलन के समग्र विकास की परवाह किये बिना शीर्ष निकाय में कब्जा सुनिश्चित करेगाजिसकी तरफ एनसीयूआई आगे बढ़ रहा है।

उन्होंने स्टेट को-ऑप यूनियन्स का उदाहरण देते हुये कहा कि अन्य क्षेत्र की तुलना में इन समितियों का प्रतिनिधित्व एनसीयूआई की बोर्ड में अधिक होता है जो एनसीयूआई में भारी योगदान देती है और एनसीयूआई के वित्त की रीढ़ है। इससे भी बदतर, एनसीयूआई के उपनियम निर्वाचन को नहीं बल्कि चयन को बढ़ावा देते हैं।

दो प्रतिनिधियों के बीच चुनाव कैसे हो सकता है”। इसी तरहकई ऐसी सीटें हैं जहां पिछले 15 वर्षों से यही परंपरा चलती आ रही है। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था का मजाक उड़ाना है क्योंकि राज्य को-ऑप यूनियन के प्रतिनिधि एक प्रस्तावक और एक समर्थक की तलाश करते हैंजिन्हें मतदाता होने की आवश्यकता नहीं है। क्या यह चुनाव प्रक्रिया का मजाक और बोर्ड में घुसने का एक ठोस तरीका नहीं है”, डबास ने पूछा।

को-ऑप एजुकेशन फंड में सबसे बड़ा योगदान देने वालों की श्रेणी के बारे में भी बात करते हुएडबास ने कहा कि सीटें हैंजिसमें से इफको और कृभको पहले नामित थे। शेष दो सीटें या तो खाली हैं या तथाकथित राष्ट्रीय सहकरी-निकाय जैसे एनसीसीएफ़ या नेफेड को दे दी गई हैं।

मल्टी-स्टेट कोऑपरेटिव बैंकों और क्रेडिट सोसाइटियों के योगदान की कीमत पर डोर प्लानिंग के पीछेयह सुनिश्चित किया जा रहा है कि इन दो सीटों को पुनः राष्ट्रीय को-ऑप निकायों के नाम पर “उनके” द्वारा ले लिया जाय। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 125 सदस्य समितियों के ऊपर उच्चतम योगदान देने वालों को प्राथमिकता दी जाय, डबास ने आरोप लगाया।

इसके अतिरिक्तडबास ने कई महत्वपूर्ण सहकारी क्षेत्रों को एक में शामिल करने के खिलाफ याचिका दायर कीजिसमें अब आवासडेयरीचीनीउपभोक्ता के साथ-साथ कमजोर क्षेत्रों जैसे कि श्रममत्स्य पालन और आदिवासी सहकारी समितियां शामिल हैं।एनसीयूआई के एक नेता ने कहा, “इस बदलाव ने डबास के चुनाव को और अधिक कठिन बना दिया है।”

डबास का तर्क है कि ये महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं और नए निर्वाचन क्षेत्र ने उन्हें दो सीटें दी हैं। ऐसा हो सकता है कि दो सीटों को एक ही क्षेत्र जैसे चीनी या डेयरी या किसी अन्य द्वारा जीत लिया जाएजिससे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व से वंचित किया जाए।

मामला अब मध्यस्थता में है। हालांकि डबास एक अनुकूल निर्णय के प्रति आशान्वित है।

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