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पटना उच्च न्यायालय ने रजिस्ट्रार के आदेश को किया खारिज: राय और अन्य होंगे फिर से बहाल

एक वर्ष से अधिक समय से लंबित एक मामले में ऐतिहासिक निर्णय देते हुए पटना उच्च न्यायालय ने बिहार के कई केंद्रीय सहकारी बैंकों के अध्यक्ष को पुनः बहाल किया है।

स्टेट रजिस्ट्रार के आदेश को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय ने गोपालगंज जिला केंद्रीय सहकारी बैंक के अध्यक्ष महेश राय, बेगूसराय जिला केंद्रीय सहकारी बैंक के अध्यक्ष नरेंद्र कुमार सिंह और वैशाली जिला केंद्रीय सहकारी बैंक के अध्यक्ष विष्णुदेव राय को उनके पदों पर बहाल कर दिया है। अदालत ने सोमवार को फैसला सुनाया।

कोर्ट ने रजिस्ट्रार को कारण बताओ नोटिस भेजा है जिसमें उन्हें तीन सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है। अदालत के फैसले की घोषणा के साथ, राय, सिंह और राय अब डीसीसीबी के अध्यक्ष बने रहेंगे।

इस संवाददाता के साथ एक टेलीफोनिक संवाद में महेश राय ने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय को सभी संबंधित दस्तावेज एक सीलबंद कवर में मिले हैं और इस मामले को स्वयं सुनने का आदेश दिया है।

बता दे कि मामला बिहार राज्य सहकारी बैंक से संबंधित है, जिसमें शीर्ष बैंक ने अपने लाभ में से कुछ पैसे डीसीसीबी बैंकों और पैक्स सोसायटियों के विकास के उद्देश्य से दिए थे। महेश राय ने बताया कि इसको लेकर 2018 में राकेश कुमार राय, जिनका सहकारिता से संबंध नहीं है, ने बिहार राज्य सहकारी बैंक में वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी और स्टेट रजिस्ट्रार का दरवाजा खटखटाया था।

उन्होंने अपनी शिकायत में कहा, “राज्य सहकारी बैंकों के सर्वोच्च निकाय बिहार राज्य सहकारी बैंक ने राज्य के सभी 22 डीसीसीबी को 10-10 लाख रुपये और पैक्स समितियों को 2.5-2.5 लाख रुपये सहकारी विकास निधि के तहत बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए दिये हैं”।

30 मई 2019 के एक पत्र में, रजिस्ट्रार ने राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष रमेश चंद्र चौबे और अन्य बोर्ड सदस्यों को जिला स्तर पर उनके दायित्वों से हटा दिया था। बिहार को-ऑप अधिनियम 1959 के विभिन्न खंडों का हवाला देते हुए, पत्र में कहा गया है कि चौबे अपने आप किसी भी पंजीकृत सहकारी समिति के सदस्य बनने के अयोग्य हो गए हैं।

जब जून में बिस्कोमॉन का चुनाव हुआ तो चौबे और रजिस्ट्रार द्वारा खारिज किए गए अन्य लोगों ने अपना नामांकन दाखिल किया, तो विपक्ष ने इसे अवैध करार दिया।

लेकिन हाईकोर्ट में सोमवार की सुनवाई ने राज्य में एक बार फिर से सहकारी राजनीति का स्वरूप बदल दिया। “अदालत ने आरसीएस के आदेश को खारिज कर दिया है और हमें बैंक के अध्यक्ष के रूप में बहाल किया है”, राहत की सांस लेते हुए महेश राय ने कहा, जिन्हें सुनील सिंह का खास समर्थक भी माना जाता है।

राय ने आगे कहा, “मैंने 17 जुलाई 2019 को बैंक का प्रभार संभाल लिया है। मुझे बैंक में चार वर्षों से अधिक समय तक अपनी पारी खेलनी है।” राय बिहार मार्केटिंग फेडरेशन बिस्कोमान के बोर्ड पर भी हैं।

जस्टिस राजीव रंजन ने बैंक के पक्ष में फैसला सुनाया है।

अधिनियम के मुताबिक, अगर कोई भी राज्य सहकारी बैंक का निदेशक वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया जाता है तो वे जिला स्तर के प्रभार से बाहर किया जाएगा।

गोपालगंज सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक की स्थापना 1917 में हुई थी और इसका डिपोजिट 250 करोड़ रुपये से अधिक है। 16 शाखाओं के नेटवर्क वाले बैंक ने पिछले वित्तीय वर्ष में 40 लाख रुपये का लाभ कमाया था।

हालांकि रमेश चंद्र चौबे से संपर्क करने का प्रयास फिलहाल सफल नहीं हुआ है, लेकिन पता चला कि वह राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष के रूप में अपना पदभार संभालने की तैयारी में लगे हैं। चौबे रजिस्ट्रार के 30 मई के पत्र से काफी चिंतित थे जिसने कम से कम 12 सहकारी निकायों में उनके पदभार को खतरे में डाल दिया था। “यह केवल उनके दोस्त सुनील सिंह थे, जो किसी तरह उन्हें बिस्कोमान बोर्ड में ले गए, जिससे उनका गौरव कुछ हद तक बहाल हुआ”, एक अंदरूनी सूत्र ने चुटकी ली।

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