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क्या राधा मोहन सिंह की जगह अशोक गुलाटी लेंगे?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नए मंत्रिमंडल का गठन किया जाना अभी बाकी है लेकिन राधामोहन सिंह को बाहर करने और उनकी जगह पर अशोक गुलाटी को लाने के लिए ठोस प्रयास किये जा रहे हैं। मीडिया भी इस षड्यंत्र में शामिल प्रतीत हो रही है।

शपथ ग्रहण समारोह 30 मई को शाम 7 बजे होना है। जिन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया जाना है उनके नामों का अभी तक कोई खुलासा नहीं हुआ है लेकिन अफवाहें उड़ने लगी हैं

नरेंद्र मोदी द्वारा संभावित नामों पर किसी भी अटकल के खिलाफ बार-बार दिए गए बयानों के बावजूद, कुछ मीडिया घराने ऐसे नामों को व्यक्त करने में व्यस्त हैं। इस तरह के नामों में से एक नाम अशोक गुलाटी का सामने आया है जिन्हें राधा मोहन सिंह की जगह पर केंद्रीय कृषि मंत्री बनाए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

कहा जा रहा है कि “कृषि लागत और मूल्य आयोग” (सीएसीपी) के पूर्व अध्यक्ष गुलाटी ने कई खाद्यान्नों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की बढ़ोतरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वर्तमान में वह ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’में अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर इन्फोसिस-पीठ के अध्यक्ष हैं।

गुलाटी का बखान करते हुए मीडिया की खबरें राधा मोहन सिंह की भरपूर आलोचना कर रही हैं और कह रही हैं कि उनके खराब प्रदर्शन के चलते भाजपा तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा का चुनाव हार गई थी।

गुलाटी के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर उनके नाम की सम्भावना का जमकर स्वागत किया है। उनके एक समर्थक ने लिखा कि “पीएम मोदी को किसी ऐसे व्यक्ति को कृषि विभाग सौंपने की आवश्यकता है जो कृषि से संबंधित मामलों को समझने के लिए विख्यात हो और कैबिनेट में भी अपनी बात रख सके।”

दूसरी ओर, राधा मोहन को काफी मिलनसार और दोस्ताना माना जाता है, जो अपनी सहज शैली और जमीनी दृष्टिकोण के कारण सहकारी नेताओं के दिलों पर राज करते हैं। ‘सहकार भारती’ से लेकर गैर-आरएसएस निकायों के नेता पार्टी लाइन से हटकर उनकी प्रशंसा करते हैं।

“भारतीयसहकारिता.कॉम” को कुछ सहकारी नेताओं ने कहा कि सहकारिता को समझने में समय लगता है और अगर केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह को नहीं बनाया जाता तो सहकारिता आंदोलन को हानि होगी।

लेकिन उन्हें इस बात से सांत्वना मिलती है कि कोई भी मोदी के दिमाग को नहीं जानता है और ये सभी नाम कोरी कल्पना हैं। उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए पिछले कई अनुभवों को उद्धृत किया, जैसे कि राष्ट्रपति पद के लिए व्यक्ति की पसंद या विमुद्रीकरण या सर्जिकल स्ट्राइक। उन्होंने कहा कि मोदी के दिमाग को पढ़ना मुश्किल है और मीडिया अनभिज्ञ है।

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