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एनसीयूआई-एनसीसीटी मामला फिर से स्थगित

एक बार फिर सोमवार को एनसीसीटी को एनसीयूआई से अलग करने के मामले की सुनवाई दिल्ली उच्च न्यायालय में नहीं हो पाई क्योंकि बेंच के पास कई लंबित मामले पहले से मौजूद थे। कोर्ट में एनसीयूआई के वकील और अधिकारियों ने दोपहर 4.30 बजे तक इंतजार किया लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा।

एनसीयूआई के एक अधिकारी ने  बताया कि, सभी लंबित मामलों के निपटारा के लिए बेंच को रात दस बजे तक बैठना पड़ सकता था।  भारतीय न्यायपालिक किस कदर लंबित मामलों के बोझ तले काम कर रही है, इसका मुझे सीधा अनुभव सोमवार को हुआ, उन्होंने रेखांकित किया।

एनसीयूआई के वकील हरीश मल्होत्रा ने बेंच से अनुरोध किया कि एनसीयूआई-एनसीसीटी मामले पर मंगलवार को सुनवाई की जाए लेकिन बेंच ने मंगलवार को पहले से लंबित मामलों का हवाला देते हुए इस बात से इनकार कर दिया।

इस बीच एनसीयूआई के मुख्य कार्यकारी एन सत्यनारायण ने भारतीय सहकारिता को बताया कि इस मामले की अगली सुनवाई 1 नंवबर को होगी। कोर्ट में सीई के साथ कई अन्य अधिकारी दोपहर दो बजे से अदालत परिसर में इंताजर कर रहे थें।

“एक बात निश्चित है कि 1 नंवबर को हमारे मामले को स्थगित नहीं किया जाएगा क्योंकि बेंच ने उस दिन के लिए निश्चित समय दोपहर 2.15 का दिया है। ऐसा सुनिश्चित किया गया है कि सुनवाई में और देरी नहीं की जाएगी”, सत्यनारायण ने बताया।

बता दें कि इससे पहले एनसीयूआई-एनसीसीटी मामला करीब तीन बार सुनवाई के लिए आया था लेकिन हर बार ये टलता रहा है। एनसीयूआई के कुछ अधिकारियों वरिष्ठ वकील वी पी सिंह को इस मामले को ढिलाई बरतने के लिए जिम्मेदार ठहराते है। उनका मानना है कि सिंह ने एनसीयूआई के हित में काम नहीं किया।

लेकिन अब एनसीयूआई ने इस मामले के लिए कई वकीलों को जिम्मेदारी सौंपी है। वकील हरिश मल्होत्रा के अलावा, वकील कृष्णन दयाल भी इस मामले की देख-रेख कर रहे हैं। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी के पुत्र अविष्कार मनु सिंघवी भी इस मामले का अध्ययन कर रहे हैं।

एनसीयूआई के वरिष्ठ अधिकारियों और वकीलों को भरोसा है कि उन्हें इस मामले पर विजय प्राप्त होगी। उन्होंने तर्क है कि सरकार के इस कदम से देश की शीर्ष सहकारी संस्था कमजोर होगी। उन्होंने एनसीयूआई के उप-नियमों का भी उद्धरण दिया और कहा कि सरकार के लिए इस कदम को अदालत में साबित करना आसान नहीं होगा।

पाठकों को याद होगा कि एनसीयूआई को कृषि मंत्रालय की तरफ से एक पत्र प्राप्त हुआ था जिसका शीर्षक था कि “नेशनल काउंसिल कॉपरेटिव ट्रेनिंग को स्वतंत्र और व्यावसायिक इकाई बनाने के लिए नेशनल कॉपरेटिव यूनियन ऑफ इंडिया से अलग करना”।

पत्र में कहा गया है कि एनसीयूआई के नियंत्रण के कारण, एनसीसीटी अपने लक्ष्य को हासिल करने में असफल रही है और इसकी वजह से प्रमुख संस्थान वामनिकॉम की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंचा है। हालांकि एनसीयूआई ने इन आरोपों का खंडन किया है।

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