एनसीयूआई

डॉ दिनेश सीईओ, एनसीयूआई का जवाब

इससे बड़ा दुष्प्रचार का मामला कोई भी नहीं हो सकता। मैं शासी परिषद से लेकर मंत्रालय तक सचमुच उनके लिये भीख मांगता रहा हूं, दुखी भाव में एनसीयूआई के मुख्य कार्यकारी ने भारतीय सहकारिता से बातचीत में कहा तब जब उन पर प्रोजेक्ट अधिकारियों ने आरोप लगाए।

डॉ दिनेश पर आरोप है कि अगर एनसीयूआई के अध्यक्ष डॉ चंद्र पाल सिंह यादव प्रोजेक्ट अधिकारियों की मदद करना चाहता है तो डॉ दिनेश उसे बिगाड़ने का काम कर रहे हैं। प्रोजेक्ट अधिकारियों ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी समस्याओं के बारे में मंत्रालय को अभी तक उचित तरीके से जानकारी भी नहीं दी गई।

प्रोजेक्ट अधिकारियों का 5-6 महीने का वेतन अभी तक लंबित था और इस विषय पर डॉ दिनेश ने कहा कि मुझे तत्काल केंद्रीय रजिस्ट्रार श्री आर.के.तिवारी के साथ बातचीत करके वेतन का भुगतान करवाना पड़ा था। वास्तव में अगर वे नहीं होते तो सारे प्रोजेक्ट बंद हो जाते, उन्होंने सफाई दी।

मैं हर साल दृढ़ता से उनका मामला शासी परिषद के सदस्यों के समक्ष रखता हूं, उन्होंने कहा। पाठकों को ध्यान होगा कि प्रोजेक्ट को वार्षिक नवीकरण प्रदान किया जाता है और यह शीर्ष संस्था भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ की शासी परिषद द्वारा पारित किया जाता है। भारतीय सहकारिता ने देखा है कि कई बार सदस्य इसके पक्ष में नहीं होते हैं और डॉ दिनेश सचमुच इसकी मांग करते हैं।

उनकी स्थिति को समझने के लिए आपको इतिहास में जाना होगा,दिनेश ने संवाददाता से कहा। क्षेत्र प्रोजेक्ट का विचार सहकारी आंदोलन को उन क्षेत्रों में मजबूत बनाने के लिये नियोजित किया गया था, जिन क्षेत्रों मे उसका अस्तित्व नहीं था। ये मोबाइल वेन की तरह थे जो चारो तरफ अस्थानिय लोगों को सहकारी जीवन के तर्के सीखने का काम करते थे। अलग-अलग राज्यों में इनकी कुल संख्या 45 थी, दिनेश ने कहा 

प्रोजेक्ट के साथ तीन से चार कर्मचारियों की श्रेणियां जुड़ी है जैसे प्रोजेक्ट अधिकारी, कृषि गाइड निरीक्षक, सहकारी शिक्षा निरीक्षक और महिला जुटाना लेकिन व्यावहारिक रूप से प्रोजेक्ट को ज्यादातर सिर्फ एक व्यक्ति द्वारा देखा जाता है।

डॉ दिनेश ने कहा कि उनकी वजह से ही उनके वेतन में 35 प्रतिशत की वृद्धि की गई। मैनें इसके ऊपर की योजना बनाई हुई थी कि उन्हें 100 प्रतिशत वेतन में वृद्धि करने के बारे में सोचा था लेकिन कई कारणों से विफल रहा, दिनेश ने कहा।

मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि जब सरकार ने 2007 में उनकी शर्तों पर प्रतिबंध लगया था तब उन्होंने अदालत का दरवाजा क्यों नहीं खटखटाया। उन्हें स्केल-संरचना से संविदात्मक संरचना में परिवर्तित किया गया और उन्हें समेकित राशि को 15,000 से अधिक की पेशकश नहीं की थी। मैने सोचा था कि उनके वेतन में बढ़ोतरी की जाए, जब मुझे लगा कि वह इसके अधिक के लायक थे, मुख्य कार्यकारी ने कहा।

भारतीय सहकारिता को पता चला कि इन अधिकारियों को कोर्ट जाने के खिलाफ सलाह दी गई थी और उनकी नियुक्ति भी रहस्यों में छुपी हुई हैं। उन्हें स्थानीय सहकारी नेताओं के झक्क पर नियुक्त किया गया था और ज्यादातर नेता उन्हें निजी स्टाफ के रूप में इस्तेमाल करते थे। उन्हें डर था कि अगर सरकार के इस कदम को वे चुनौती देंगे तो उनका चिट्टा खुल सकता है और समेकित फंड से जो कुछ भी उन्हें मिल रहा है वह भी नहीं मिलेगा।

लेकिन डॉ दिनेश ने कहा कि वास्तव में कई प्रोजेक्टों में अद्भुत काम हुए हैं। मणिपुर का सूअर पालन, तिरुवंनतपुरम का बकरी पालन, कर्नाटक का शिमोगा प्रोजेक्ट और महिलाओं सशक्तिकरण प्रोजेक्ट उनके द्वारा शुरू किया गया। डॉ दिनेश ने कहा कि सिक्किम प्रोजेक्ट से विनोद गिरी को मंत्रालय में उप निदेशक बनाया गया है।

मैं ही था जो चाहता था कि स्थानीय सहकारी नेताओं के खातों में वेतन भेजने की बजाए वेतन सीधा क्षेत्र अधिकारियों के खातों में स्थानांतरण किया जाए। जाइए और आर.के.तिवारी से पूछिए जिनके साथ मैंने देश के छह लाख गावों के लिये कम से कम 100 नये प्रोजेक्ट खोलने के बारे में विचार विमर्श किया था, दिनेश ने कहा।

हमने उनके वेतन की समीक्षा के लिये एक समिति का गठन और सदस्यों को दूर-दराज क्षेत्रों में कुछ प्रोजेक्ट का दौरा करने पर विचार विमर्श किया और सरकार को इसके लिये सिफारिश भी भेजी गई है। यह सब हमारे हाथ में नहीं है, सरकार के हाथ में है, सरकार के पास उनके वर्तमान और भविष्य के बारे में सोचने की ताकत है लेकिन वे इस बुनियादी बात को समझने में असफल रहे, डॉ दिनेश ने कहा।

 

 

Tags
Show More

Related Articles

Back to top button
Close