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क्या विधायक को सहकारी संस्था छोड़ देना चाहिए?

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने एक ऐसा सगुफा छोड़ा है जिसका परिणाम दूरगामी सिद्ध हो सकता है। चौहान ने कहा कि सहकारी समितियों का राजनितिकरण खत्म होना चाहिए। इस दिशा में राज्य सरकार 8 दिसंबर से शुरू होने वाले विधानसभा में संशोधन विधेयक पेश कर सकती हैें।

सहकारी समितियों के पदाधिकारी अगर संसद या विधानसभाओं सीट के लिए निर्वाचित होते हैं तो उन्हें अपने पदों से इस्तीफा देना होगा। मध्य प्रदेश के सहकारी अधिनियम में इस साल के अंत तक इस संशोधन को लागू करने की उम्मीद है।

गौरतलब है कि कुछ कॉपोर्रेटरों ने अतीत में अयोजित सहकारी संस्थाओं के समारोहों में सहकारिता के राजनितिकरण के खिलाफ जम कर बोला है। उनका मानना है कि विधायक बनने के बाद कॉपोर्रेटरों को सहकारी संस्थाओं के पदों से त्याग पत्र दे देना चाहिए। ऐसे भी कई राजनेता हैं जिनकी पहचान सहकारी समितियों के माध्यम से ही बनी है, उदाहरण स्वरूप पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार।

यूसीबी के बड़े नेता एच.के पाटिल एक दूसरे उदाहरण हैं। भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह भी गुजरात के शहरी सहकारी बैंकों के अध्यक्ष रह चुके हैं और एनसीयूआई के वर्तामान अध्यक्ष चन्द्र पाल सिंह यादव हाल ही में राज्य सभा सीट के लिए निर्वाचित हुए हैं। नैफेड के अध्यक्ष बिजेन्दर सिंह भी अतित में कांग्रेस के विधायक रहे चुके हैं।

इसके विपरीत कुछ लोगों का मनाना है कि सहकारी नेताओं के सांसद या एमएलए बनना पूरे सहकारी क्षेत्र के लिए एक शुभ संकेत हैं। हाल ही में एनसीयूआई के अध्यक्ष को राज्य सभा की सीट के लिए निर्वाचित किया जाने पर पूरे सहकारी आंदोलन में खुशी की लहर फैल गई लोगों का विश्वास बढ़ गया कि अब कोई सहकारी क्षेत्र से जुड़े मुद्दों को संसद में पेश कर पाएगा।

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