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पैक्स को बचाना हमारा सहकारी धर्म है: चंद्रपॉल सिंह यादव

भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (एनसीयूआई) के अध्यक्ष डॉ. चंद्रपॉल सिंह यादव ने प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पैक्स) की संपति लेने और उनके सदस्य को “कमीशन एजेंट” बनाने के नाबार्ड के इरादे का पुरजोर विरोध किया है। उन्होंने कहा कि ऐसा किसी भी सूरत में नहीं होने दिया जाएगा। इस बारे में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने बीते 22 जुलाई को सर्कुलर जारी किया था। सर्कुलर को लेकर राज्य सरकारों में खलबली मची है और इसका राज्यों में व्यापक विरोध हो रहा है।

एनसीयूआई अध्यक्ष डॉ. यादव पैक्स पर आसन्न सकंट और उससे उबरने के तरीके पर विचारविमर्श के लिए आयोजित वर्कशॉप को संबोधित कर रहे थे। वर्कशॉप में विभिन्न राज्य सरकारों के सहकारिता अधिकारी और सहकारी संघ के प्रतिनिधि ने अपनी राय रखी और पैक्स को मजबूती दिलाने के भावी रणनीति पर विचार विमर्श किया। वर्कशॉप में बुलाए जाने के बावजूद नाबार्ड का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था।

सहकारिता के एपेक्स संस्था एनसीयूआई के अध्यक्ष डॉ. यादव ने कहा कि नाबार्ड के इस सर्कुलर से सहकारिता की आधारभूत संरचना यानी पैक्स के भविष्य पर खतरा उत्पन्न हो गया है। यह सर्कुलर गहरी साजिश का हिस्सा बताया। उन्होंने अंदेशा जताया कि नाबार्ड ने यह किसी अमेरिकी कंपनी की सलाह पर निर्णय लिया है।

उन्होंने कहा कि पैक्स एक सौ दस साल पुरानी सहकारी व्यवस्था का अहम हिस्सा है। पैक्स जैसी सरंचना की वजह से ही सहकारिता का विकास देश के 97 प्रतिशत गांवों तक संभव हो पाया है। पैक्स आम ग्रामीण किसानों की संस्था हैं। इन्हें किसी भी सूरत में खत्म नहीं होने दिया जाएगा। इसके लिए आरबीआई से लेकर मंत्रालय तक आवाज बुलंद की जाएगी। वर्कशॉप में पैक्स को खत्म करने के साजिश के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने का भी निर्णय लिया गया।

वर्कशॉप में नेशनल फेडरेशन ऑफ स्टेट कॉपरेटिव बैंक लिमिटेड के प्रबंध निदेशक बी. सुब्रहमण्यम ने कहा कि नाबार्ड ने सर्कुलर की वैधता को चुनौती दी और बताया कि जिस सात विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के आधार पर सर्कुलर तैयार किया गया है उसमें से छह सदस्य समिति के फैसले के खिलाफ हैं, फिर भी ना जाने क्यों नाबार्ड पैक्स के सदस्यों को कमीशन एजेंट बनाने पर आमादा है।

एनएसयूआई के मुख्य अधिशासी डॉ. दिनेश ने कहा कि अपने देश में ग्रामीण ऋण सहकारिता का जन्म अब से तकरीबन 110 पहले यानी 1904 में हुआ था। पैक्स को खत्म करने की पहल से पूरे सहकारिता क्षेत्र की मुसीबत बढ़ जाएगी।

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