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जीसीएमएमएफ: भतोल और विपुल में चुनावी संघर्ष

गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के चुनाव में पार्थी भतोल और विपुल चौधरी के बीच शीर्ष स्थान के लिए लड़ाई है।

अभी तक भतोल ने संकोचवश अपने नाम की घोषणा नहीं की थी, वह शायद आलाकमान से ग्रीन सिग्नल का इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन रविवार को भारतीय सहकारिता डॉट कॉम से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वे इस दौड़ में बने हुए है।

भतोल जीसीएमएमएफ चुनाव के दिन 18 अगस्त को नामांकन दाखिल करेंगे। अदालत के आदेश का पालन करते हुए आनंद के उपायुक्त ने चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की थी। विपुल चौधरी भी उसी दिन नामांकन दाखिल करेंगे।

विपुल चौधरी मेहसाणा की दूधसागर दूध संघ का प्रतिनिधित्व करते है जबकि भतोल बनास डेयरी का प्रतिनिधित्व करते है।

हालांकि भतोल काफी सावधानी से अपने कदम बढ़ा रहे है। यह स्पष्ट है कि उन्हें मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से कुछ सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है।

लेकिन भारतीय सहकारिता को पता चला है कि मोदी भतोल के पक्ष में है लेकिन उन्होने सभी दूध यूनियनों को अपनी पसंद के बारे में खुले तौर पर बताया नही है।

सोलह दूध यूनियनों में 12 सत्ताधारी पार्टी द्वारा और शेष चार कांग्रेस द्वारा नियंत्रित किए जा रहे हैं। मोदी खुद विधानसभा चुनावों की तैयारी में व्यस्त है ऐसे में वह अपनी पसंद की घोषणा चुनाव के कुछ दिन पहले ही करेंगे।

विपुल चौधरी को चुनाव में चुनौती देने वाले भतोल भी भाजपा के है, यह भी देरी का मुख्य कारण हो सकता है। मोदी बिना कारण किसी को भी नाराज नहीं करना चाहते हैं। संभव है कि वह नवंबर में होने वाले राज्य के चुनाव की व्यापक संदर्भ में उम्मीदवारों के समर्थन करने पर होने वाली हानि या लाभ का आकलन कर रहे होंगे।

लेकिन यह स्पष्ट है कि कांग्रेस विधायक और अमूल दूध संघ के अध्यक्ष रामसिंह परमार के लिए कोई मौका नही है।

उनका प्रयास भतोल को परेशान करना है इसके साथ ही उनका समर्थन विपुल चौधरी के लिए जोखिम से भरा है क्योंकि बाहरी लोगों से उनके समर्थन माँगने पर पार्टी को अच्छा नही लगेगा।

विपुल के विरोधियों ने उन पर दूधसागर से जुड़े कई मामलों में निष्पक्ष और प्रगतिशील तरीके से आयोजन नहीं करने का आरोप लगाया है। उनका स्वभाव और लोगों के साथ व्यवहार का तरीका भी पसंद नहीं किया जा रहा हैं।

बनास डेयरी में अनियमितता के कई मामलों का हवाला देते हुए कई लोग भतोल का भी विरोध करते हैं। चुनाव के दिन जितने करीब आ रहे है, लड़ाई उतनी ही जोर पकड़ती जा रही है।

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