केंद्रीय भंडार: क्या रावत युग की होगी समाप्ति?

केंद्रीय सरकारी कर्मचारी उपभोक्ता सहकारी सोसायटी लिमिटेड जो कि केंद्रीय भंडार के नाम से प्रसिद्ध है, को वक्त से चुनाव न कराने को लेकर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है।

इसमे केंद्र सरकार जिसकी 70 प्रतिशत हिस्सेदारी होती है, ने पूछा है कि वर्तमान बोर्ड के खिलाफ चुनाव को लेकर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई, जो समय पर चुनाव कराने में नाकाम रही है। 9 मई 2017 को समय सीमा तय की गई थी लेकिन हाल ही में आयोजित बोर्ड की बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा तक नहीं की गई।

“केंद्रीय भंडार लोगों के लिए कमाई का जरिए बन चुकी है और कुछ लोग इसके माध्यम से धन कमाने की कोशिश कर रहे हैं”, एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा।

सूत्रों का कहना है कि एम.एस.रावत जो कि शहरी मंत्रालय में एक सहायक निदेशक स्तर के अधिकारी है, वे करीब 10 वर्षों से केंद्रीय भंडार को नियंत्रित कर रहे है। जब उनके लिए चुनाव लड़ना संभव नहीं हुआ तो उन्होंने अपनी पत्नी पूनम रावत को अध्यक्ष बना दिया था, जैसे बिहार में लालू यादव ने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाकर किया था था।

सूत्रों का कहना है कि सहकारी संस्था की सदस्यता सूची में भी काफी धांधलेबाजी की गई है। कभी-कभी वे दिखाते हैं कि संस्था के 19 हजार सदस्य हैं और कई सम्मेलन में उन्होंने दावा भी किया है कि 16 हजार हमारे सदस्य है। हालांकि लेखा परीक्षक की रिपोर्ट माने तो करीब 90 हजार लोग इसके सदस्य है और इनमें से अधिकांश एसोसिएट सदस्य हैं।

जनवरी में, रावत के खिलाफ वित्तीय अनियमितताओं की खबरें थी और कथित तौर पर जांच के आदेश भी दिए गए थे, सूत्रों ने बताया।

1963 में केन्द्रीय सरकारी कर्मचारी एवं जनसाधारण के हित के लिए कल्याणकारी परियोजना के रूप में हुआ था । यह कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय भारत सरकार के तत्वाधान के अधीन कार्य करता है और पिछले वित्त वर्ष में 1000 करोड़ रुपये का कारोबार किया। सितम्बर 2000 में बहुराज्जीय उपभोक्ता सहकारी समिति के रूप में केन्द्रीय रजिस्ट्रार सहकारी समिति भारत सरकार के अधीन इसका पंजीकरण हुआ है।

केंद्रीय भंडार की अध्यक्षता श्रीमती पूनम रावत और प्रबंध निदेशक आर.के.सिंह कर रहे हैं।

Show More

Related Articles

Back to top button
Close